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तया न वधूं प्रति तच्छ्रे ष्टिवचः, -- यः का किणी मप्यपथप्रपन्ना - मन्वेषते निष्कसदतुल्यां ॥ कालेन कोटिष्वपि मुक्तहस्त — स्तस्याऽनुबंधं न जहाति लक्ष्मी ॥ ६५ ॥ एवं धर्माधिकारेऽपि विशेषज्ञो योग्यः, यदागमः सव्वत्थ संजमं । संजम अ पाणमेव रखिना ॥ मुच्चर अश्वायायो । पुणो विसोही नयाविरई ॥ ६३ ॥ विशेषज्ञ विषया दृष्टांताश्चात्र श्री अजयकुमारमंत्रिश्रीवत्रस्वामिश्री मदार्य र क़ित सूर्या दयोsaiतव्याः ॥ ६४ ॥ तथा अप्रमत्तो निषा विषय त्रिकथामयादिप्रमादरहित:. स धर्मस्य योग्यः सूरप्रजनृपादिवत्, प्रमादिनो धर्मश्रद्धानादेरप्यनुत्पत्तेः शशिनृपादेखि, तडुक्तं ॥ ६५ ॥ ॥
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वन्ही ते वखते ते शे पोताना पुत्र बहुने नीचे मुजब वचन कछु हनुं जे कुमागे वरात एक कोमीन पण जे हजार सोनामोहोरो सरखी जाये तथा बखत पचे क्रीमाथी पण ने हाथ जावं से के तेना संग अनुमी बोमती नयी ॥ ६२ ॥ एवं ते धर्मसंबंधी अधिकारमां पण विशेषज्ञ योग्य आगममां पाक ने के, सर्व अर्थथी पण संयमन। रक्षा करवी; तया संयमर्थ पण आत्मानी रक्षा करवी कंसके (जो मा हात होतो) ने पापी मुक्त यह फरीने पण शुरू यह शकश, ने अविरति रहेशे नहीं ।। ६३ ।। अहीं विशेषज्ञना संबंधां श्री अजयकुमार मंत्री, श्री वस्त्रस्वामी तथा श्रीमान आर्यरति आदिको दृतरूप जाएवा ॥ ३४ ॥ वी अप्रमाद एटले निद्रा, विषय, विकथा तथा मय आदिक प्रमाद विनानी दिन पे धर्म योग्य छे. प्रमादिने धर्मनी श्रद्धा आदिकनी पण शशी नृप नर्थ कथं के।। ६५ ।।
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ने तेत्रो मनुष्य यदिकन पे
सरमन राजा प्राप्ति यती
श्री उपदेशरत्नाकर.