Book Title: Updeshratnakar
Author(s): Munisundarsuri, Munisundarsuri
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 373
________________ 1291 श्रीआमनृपाण सह गोपालगिरिमापत्: तत्र कदाचित् शास्त्रगोष्ट्या कदाचिधर्म गोष्टया समयो याति ॥ १६५ ॥ श्रीवप्पन्नष्टिः साम्ना श्रीश्रामनृपप्रतिबोधाय वहूनुपायानकरोत् परं स नाऽबुध्यत धर्म ॥ १६६ ॥ अन्यदा तत्र गायनवृंद सुस्वरमाययों, तत्रैका मातंगी राजानं रूपेण स्वरेण च रंजयामास १६७ ॥ राजा तपमोहितो बहिरावासमचीकरत. नवाच च–वक्त्रं पूर्णशशी सुधाधरखता बंता मणिश्रेणयः । कांतिः श्वोर्गमनं गजः परिमलस्ते पारिजातमाः॥ वाएणी कामधा कटाङ्गलहरी सा कालकूटच्चटा । तत् किं चंडमुखि त्वदर्थममरैगमंथि पुग्धोदधिः ॥ १६ ॥ न्यावाद ने श्रीआमराजानी माथ गोपालगिरि मन्य आव्या , तथा त्यां कोई वखने शास्त्रवा थी | नया कोट वन्वत धर्मवााथी नाना ममय जवा झाग्या ॥ १६५ ॥ पत्री श्रीबप्पनटिजोए सामनेदे करीने श्री आमराजाने प्रनिवाधवा माटे घाणा जपायां कर्या. परंतु तेन धमनी प्रनिवोध लाग्यो नहीं ॥१६६।। एक वग्वने न्या उत्तम गायनो कानाम गानारामांन गेलं आव्यु, नेमांनी एक उंचमीए राजाने रूप तया स्वरयी खुश | करी ॥ १६७ ॥ नेणीना म्पथी मोहित ययेन्ना राजाए वहार एक मद्देन बंधाव्यो, तथा कहेवा मान्यों के 81-हे चंद्रमुखीनारु मुख प्राणिमाना चंद्रमरखं छे. अोष्टयना अमत सरखी जे. दांतो मणिोनी श्रेणियो सरखा , कांति लक्ष्मी सरख। ने, गमन हाथी सर के, सुगंधि कम्पक सरखी छे; वाणी कामधेनु सरखी छ, कठाकानी श्रेणि काझकटनी (विपनी । च्या सरखी, पाटे शं तारे मादेज देवोए कीरसमद्रने भयेलो ? ॥ १६ ॥ श्री उपदेशरत्नाकर.

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