Book Title: Updeshratnakar
Author(s): Munisundarsuri, Munisundarsuri
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 398
________________ तेऽप्यवदन् राजन्नेकस्त्वमेव विवेकी जगति, यो हिंसाजुष्टं श्रोतं धर्म त्यक्त्वा दयाधर्म प्रपन्नः, अयं गुरुः सर्वदेवादतार एव, तमुक्त तत्वमाराधयेति ॥ १६ ॥ पूवजा अपि वत्स त्वया जिनधर्मादरणाघ्यं सुगतिनाजोऽनूमः श्वशी च महर्षि चुंज्मह इत्याद्युक्त्वा तिरोदधुः ॥ ५५ ॥ ततो दोसायितमना नृपः सम्यक् त. त्वं श्रीगुरून प्राकीत, श्रीसूरयः प्रोचुः, राजनिंजानकझाकसितमेवैतन्न कश्चित्परमार्थः ॥ ७६ ॥ देवबोधेरेकैवैषा, मम तु सप्त संति, तबक्त्या दर्शितमिदं, यदि न प्रत्येषि तदा वद, विश्वमपि समग्रं दर्शयामि, परं न किंचिदेतत, तत्वं तद्यत्वां सोमेशदेवोऽवददित्यादि ॥२७॥ तेश्रो पण कहेवा बाग्या के, हे राजन् : तुंज एक जगनमा विवेकी जो, के नेणे हिंसाना दूषण-18] 8 वाळो वेदधर्म अमीने दयाधर्य स्वीकार्यो छ, आ श्रीहेमचंदजीगुरु सर्व देवांना अवनाररुपज बे, माटे तेपणे कहना नखोर्नु नुं आगधन कर ॥ ५१४ ॥ पूर्वजो पण कहेवा झाम्या के, हे बम ! ते जे जन धर्म स्वीकार्य ने, तेथी अमा मुगतिने जननार थया छीय, अन आवी महान ऋदि अपो जोगवीय जीये १] एम कहीने तो अनाप थया ॥ २५ ॥ पठी मोळायनां मनवाला राजार गुरुमहाराजने सत्य नन्व पृश्यं, न्यार प्राचार्यजी महाराजे कयु के, हे गजन ! आ सपर्छ इंजाळनी कळानुं कार्य छ, परंतु तेमा | का पण परमार्य नथी ।। २५६ ।। ज्यार ने देवबोधि पासे आ एकन इंद्रजाळ कम , न्यार मार नवी सात कळाओं ने, अन तनी शक्तियों में आ नन देवामयु ; जो तने तेनी ग्वानरी न होय, तो 8 कहे नो समस्त जगन् जन देखा, पग्नु ने सबद्धं के नबी, माटे सत्य नव ना मेन डे, के जे | सोमेश्वरदेवे ने वखते कह रे. इत्यादि ।। २७ ॥ श्री उपदेशरत्नाकर.

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