Book Title: Updeshratnakar
Author(s): Munisundarsuri, Munisundarsuri
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 396
________________ अथ मंत्रिववसा झाततत्स्वरूपाः श्रीहेमसूरयः क्षमापतेः सांशयिकमिथ्यात्वापदो निस्तारयितुं प्रातर्नित्तितो दूरे सप्तगब्दिकमासनमध्यास्य स्थिताः ॥ ५६७ ॥ ततो देववोधेः समः कझावान् गुरुर्न दृश्यते कोऽपि, परं निजगुरौ श्रीहेमाचार्ये किंचित्कनाकौशहां संन्हाव्यते गोलावियः स्यामि प्रातर्देववोध्यादिसमई पृच्चयंते गुरव इत्यादि मंत्रिवचसा देववोध्यादिपरिवृतःप्रातमुरून्ननाम ॥३६॥ ततोऽध्यात्मशक्त्या पंचापि मारुतान्निरुध्यासनात् किंचिडुच्चस्यव्याख्यातुमारेनिरे गुरवः ॥१६॥ तावता पूर्वसंकेतितः शिष्योऽधरासनमाकृषत, ततो निराधारा एवाऽस्खलितवचनैः सार्धप्रहरं व्याख्यांतिस्म ॥ ७० ॥ श्री उपदेशरत्नाकर हवे मंत्रिना वचनथी राजानुं ते म्वरूप जणाया वाद श्रीहेमचंद्रजी राजाने संशश्वाळा मिथ्यान्वरूप मुखथी निवर्तन करवाने प्रतात नीतयी उटे सात गादीवाटुं श्रासन बीगची तेपर वेग ॥३६७|| पछी राना मंत्रिने कहेवा पाग्यो । | के, हे मंत्रि! देवबोधि सरखो कळावान बीजो को गुरु देखानो नयी, तोपण प्रापणा गुरु हेमचंद्राचार्यमां पण कं कळाकौशन ले के नहीं ? त्यार मंत्रिये को के, हे स्वामी : पनाते आपण ते माटे देवबोधिनी समन गुरुमहाराजने पूजीशं, इत्यादि मंत्रिना वचनयी गजाए देवोधि आदिक परिवार सहित प्रजाने श्रीहेमचंद्रजी महाराजने नमस्कार कर्या 11 २६७ ।। त्यारे पोतानी अध्यात्मशक्तिथी पांच वायुने रोकीने, नश आसनयी कंडक चारहीने गुरुमहाराज ब्याख्यान वाचवा साम्या ।। २६ए। एटनामा पूर्वी संकेत करझा शिष्ये नीचर्नु आसन खेंची झी), अने तेथी आधाररहितज गुरुमहागजे अघर रहन दाद पद्वार मधी अरक्षित वचनोथी जपदेश प्राप्यो । २७० ॥

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