Book Title: Updeshratnakar
Author(s): Munisundarsuri, Munisundarsuri
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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इत्यादि, तच्छुत्वा वाक्पतिः संमूखीनूयोचे, सूरिमिनाः किमस्मत्पुरतः शृंगाररोजांगं पद्यपाठं कुरुध्वे ॥ १एए ॥ सूरयः-युष्मद्देवाशिषः पवंतः स्मः, यथा स च हि श्रोतुः पुरः पननीय ; वाक्पतिः-यद्यप्येवं तथापि मुमुक्षवो वयमासन्नं निधनं ज्ञावा इह परमब्रह्म ध्यातुमायाताः स्मः ॥ १९६ ॥ सूरयः-किं तर्हि रुखादयो मुक्तिदातारो जवंतीसित ननुवे? यापति एवं संभाध्यते ॥ १५॥ सूरयो बन्लाषिर, ताफ या मुक्तिदानदमस्तं शृणु पठामः ॥ १० ॥ जं दिहीकरुणातरंगियफमा एयरस सोमं मुहं । आयारोपसमागरो परियरो संतोपसन्ना तणू ॥ तं मन्ने जरजम्ममच्चुहरणो देवाहिदेवो जियो । देवाणां अवराण दीस जमओ नेयं सरूवं जए॥१॥
इत्यादि हवे ते सांजळीने वारुपति सन्मुख था बोझवा लाग्यो के, हे मृरिमिश्री अमार) आगळ शृंगार तथा रौद्ररसवाळो पद्यपाठ शा माटे को जो ॥ १५ ॥ त्यारे प्राचार्यजी महाराजे कयु के, तमारा देवोनी अमो प्रा. शिष कहीये छीये के जे श्रीनानी. पासे कहेवामां आवडे; त्यारे वाकपतिए कडं के जोके एम.जे, तोरण अमोतो ममुक्त जीव, अमाझं मन्यु नजदीक जाणीने अमो अडी परम ब्रह्मनुं ध्यान परवा माटे पाव्या बीये ॥ १६ ॥ ते सांजळी आचार्यजी महागजे का के, झुं त्यारे रुद्र आदिक देवो मुक्ति आपनारा उ, एम तमो मानो छो? त्यारे वाकपतिये कयुं के अमाने तो एवो संजव थाय छे || १७ ॥ त्यारे प्राचार्यजी महागजे कधू के, मुक्ति देवामा ने देव || समय ने, ने अमो तमोने कहीय जीये ते सांजळो || ए जेनी दृष्टि दयाना तरंगोथी प्रफुलित थयेनी., | तथा जमर्नु मख शांत मद्रावाढ़ , तथा जेमनो आकार पाण शांततानी खाण रुप ने तथा जेमनों परिवार पण सज्ज-131 नतावाळी, अने जेमतुं शरीर पण प्रसन्नतावाटुं वे एवा देवाधिदेव श्रीजिनेश्वरमजुने जन्म, जरा तथा मृत्युना हरनारा ९ मार्नु, केमके वीजा देवोमा एवं स्वरूप देखानुं नयी ॥ १एए ॥
श्री उपदेशरत्नाकर

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