Book Title: Updeshratnakar
Author(s): Munisundarsuri, Munisundarsuri
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg
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॥१७६॥
शक्तिश्चेत्तदा मथुरायामागतं, हृदि विष्णुं ध्यायंतं, यज्ञोपवीतासंकृतं, नासाग्रन्यस्तदृशं, तुलसीमालया पत्रजीवमाझया च श्लिष्टवक्षःस्थलं, कृष्णगुणगायकं, वैष्णाबबंदवृतं, वराहस्वामिदेवन्य प्रासादांतःस्थं, वैराग्याद गृहीताऽनशनं, पर्यकासनस्थं प्रबोध्य जैनमते स्थापयर वाक्पतिराजसामंतं ॥ १ ॥ श्रीगुरवस्तत्प्रतिबोधं प्रतिझाय चतुरशीतिसामंतविचरसहस्रपरिवृता मथुरायां वराहस्वामिमंदिरं प्रापुः ॥ १ ॥ तं तथास्यं दृष्ट्वा तत्पृष्टस्याः सूरयः पेठुः,-संध्यांयत्प्रणिपत्य लोकपुरतो वधांजनिर्याचसे धत्से यच्च परां विक्षजशिरसा तत्रापि सोढं मया ॥ श्रीर्जातामृतमथने यदि हरेः कस्माहिषं तङ्कितं । मा स्त्रीलंपट मां स्पृशेत्यनिहितो गोर्या हरः पातु कः॥ ११ ॥
माटे जो आपनी शक्ति होय ती मथुगमा आवशा तथा हृदयमा विपातुं ध्यान धरता, जनोऽयी शाजिता, | नाशिकाना अन जागपर लांचनने धारण करता, तुलसीमाळा तथा पत्र जीवनी माळाथी श्लिष्ट एयशा वट्वः स्थलवाटा, | कृष्णना गुण गानाग, वैष्णवाना समूहन्धी वाटायला, वराहस्वामिदेवना मंक्षिनी उदर रहेका, गन्यथा जेणे ३,न ग्रहण करेलु जे एवा, पर्यक आसनवाळीने रहेखा एवा वाक्पति राजाना सामने बार्थ ने श्राप जैन मतमा स्थापन करो || नए । पजी श्रीगुरुमहाराज पाश नेने प्रतिवाधा प्रतिक्षा करने चायासी सामंत तग एक हमार मिताथी परवार्या यका मयुगमा बराह स्वामिना मंदिर पते पहोंच्या ॥ १ ॥ त्यां तेन तेवी सीते रहना जोइन, तना पाछळ बसीन प्राचार्य महागज के हेवा वाग्या के. हे शंकर! तुं संध्याने नमीन हाथ जमीन द्रावानी पास याचे , तथा हे निनज तुं मस्तकपर बीजी स्वीने धारण करे छ, ते पाग में सहन कर्य, वळी अगतने (समुद्रन) मवाथी जपन्न थथवी लक्ष्मी ज्यारे विधानी थइ. तो तें विर शामाटे जङ्गण कयु? माटे ह स्त्री झंपट! मने तुं स्पर्श नहीं कर ? एवी रीते पार्वतीयी कवायझा महादव तमारुं रकण करो ॥ १५ ॥
• श्री उपदेशरत्नाकर

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