Book Title: Updeshratnakar
Author(s): Munisundarsuri, Munisundarsuri
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 368
________________ #* . इत्यादीनि प्रधानज्यो गुरुराकार्याह, ग्रामनुपस्येमा गाथा: श्राव्याः, तथाहि ॥ १४३ ॥ विवि गया । नरिंदजवहुति गारविया ॥ विंजको न होइ अगओ । गएहिं बहु बिगए || १४४ ॥ माणसविणा सुहाई । जहय न अप्नेति रायहंसेहिं ॥ ततस्तव हि वा । तीजंगा न सोहनि ॥ १४९ ॥ परिसेसिअहसनलपि । माणसं माणसं न संदेहो | अन्नत्य विजत्य गया | हंसावि बग्गा न जति ॥ १४६ ॥ मदचि । नइ मुंहहीरंनचंद मोहो || पन्नपि दु मल्लयात्री | चंदणं जाय महग्घं ॥ १४७ ॥ इत्यादिक काव्यो प्रधानो पासेची सांजळीने गुरु कहेवा झाल्या के तमारे आम राजाने नीचे सुजय गाथाओ मंत्री ने कहे बे|| १४३॥ हाथीओवियाचळ विना पण राज लुक्नोज गौरववाळा या छे तेमज घ णा हाथी ओ लाझी जवाची पण विध्याचळ पण कंड हायी विनानो नयी य‍ गयो ॥ १४४ ॥ प्रेम मानससरोवर विना राजहंसने सुख मळं नथी, तेमज राजहंसो बिना मानससरोवरना किनारा पण शोजता नथी ॥ १४९ ॥ बळी - हंसो बिना पण मानससरोवर ते मानसज कक्षेत्राय ने, तेमां कं संदेह नथी नेम हंसो पण ज्यां जाशे, त्यां हंसोज कडेवाशे, परंतु यासां नही कहेवाशे ।। १४६ ॥ मन्नान चंदनयुक्त करेवाय बे ने मां रक्षां चंदनन को नदी घाटे जो आय के, तथा एवी रीते मायार्थी जोके तेप्रो प्रष्ट थाय छे, परंतु ने चंदननी किमत ओडी. पती नथीं ॥ २४ J भी उपदेशरत्नाकर.

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