Book Title: Tulsi Prajna 1997 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 45
________________ [च] आजीवपरिशुद्धिशील- शुद्ध जीविकोपार्जन | [ड़] स्मृतिशील - स्वकर्म का निरन्तर चिन्तन और स्मरण । [ज] पातिमोक्ख संवरशील - पातिमोक्ख में वर्णित आचरणों का पालन करना । इस तरह बौद्ध दर्शन में वर्णित शील का पालन निश्चित ही साधक के ऐहिक और पारलौकिक सुख का विधायक होगा । आचार्यबुद्धघोष ने ऐसा कहा है । " जैन दर्शन में शोल सवार्थसिद्धि में" व्रतों [ अहिंसादि] के परीक्षणार्थ शील का कथन हुआ है तथा शील के अन्तर्गत दिग्विरति, देशविरति इत्यादि को रखा गया है । चारित्र सार" में तीन गुणव्रत और चार शिक्षा व्रत जो श्रावक के व्रत हैं, को शील माना गया है । तत्वार्थ सूत्र में भी इसका समर्थन हुआ है ।" [क] तीन गुण व्रत :- [१) दिग्विरति - दिशाओं की मर्यादा निश्चित करके इसके बाहर धर्मार्थ ही जाना, व्यापारादि के लिए नहीं, दिग्विरति है । [ख] देशविरति एक निश्चित समय में एक निश्चिय क्षेत्र में ही परिभ्रमण करूंगा ऐसी मर्यादा बांधना और इसका अतिक्रमण धर्मकार्य के अतिरिक्त नहीं करना देशविरति है । [ग] अनर्थदण्डविरति - निष्प्रयोजन क्रिया व्यापार निरर्थक है इसलिए इसका त्याग करना चाहिए जिससे अनर्थ-दण्डविरति की सिद्धि हो सके । [क] चार शिक्षावत - १. सामायिक व्रत - विवक्षित काल तक तीनों योगों से बाह्य प्रवृत्ति से निवृत होकर और समभाव में स्थित होकर एकत्व का अभ्यास करना सामायिक व्रत है । २. पौषधोपवासव्रत - पर्व काल में इन्द्रियनिग्रह पूर्वक चतुः आहार त्याग पौषधोपवास व्रत है । ३. उपभोगपरिभोग परिणाम व्रत -भोजनादि उपभोग और वस्त्रादि परिभोगों में ह्रास वृति रखना उपभोग - परिभोग परिमाण व्रत है । ४. अतिथिसंविभाग व्रत :- नियमपूर्वक अर्जित धन से दूसरों की सेवा करना अतिथिसंविभागव्रत है । शोल के भेद देव शास्त्र और गुरु" नामक पुस्तक में डा० सुदर्शन लाल जैन ने ब्रह्मचर्य व्रत १८००० भेदों की चर्चा की इसलिए इनको जानकर के निमित स्त्री संसर्ग से बचने का निर्देश करते हुए शील के है । चूकि स्त्री संसर्ग १८००० प्रकार से हो सकता है इसमें त्याग भावना करनी चाहिए जिससे शील व्रत की सिद्धि होगी । उक्त १८००० प्रकार से स्त्री संसर्ग से बचना ही १८००० प्रकार का शील भेद हो जाता है । इनके अनुसार दो प्रकार की स्त्रियां हैं-चेतन और अचेतन । [क] चेतन स्त्री संसर्ग से शील के भेदः -- देव, मानुषी और त्रिर्यञ्चिनी तीन स्त्रियों X तीन योगXतीन करण X पांच इन्द्रियां X द्रव्य, भाव X आहार, भय खंड २३, अंक ३ २९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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