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कहा है, वह व्याकरण के नियमों से सर्वथा अनियन्त्रित भी नहीं है और लौकिक संस्कृत की भांति बहुत नियन्त्रित भी नहीं है। आर्ष-प्रयोग प्राचीन व्याकरण से नियन्त्रित है। उन नियमों की जानकारी वैदिक व्याकरण के नियमों के सन्दर्भ में की जा सकती है।
आचार्य हेमचन्द्र एवं त्रिविक्रम ने आर्ष का विवेचन किया है। वस्तुतः जैन परम्परा के आचार्य होने के नाते हेमचन्द्र का, अर्द्धमागधी (जो जैन आगमों की भाषा है।) के प्रति विशेष आदरपूर्ण भाव था, अतएव उन्होंने इसे आर्ष नाम से अभिहित किया।" इस आर्ष शब्द का मूल आगम का ऋषिभाषित शब्द है ।" आचार्य हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत-व्याकरण में आर्ष-विधियों को वैकल्पिक बताया है।८ इस नियम के अनुसार उन्होंने आगम-सूत्रों के उन स्थलों का निर्देश किया है, जो उनकी दृष्टि में 'व्याकरण-सिद्ध नहीं थे। उदाहरण के रूप में कुछ प्रयोग प्रस्तुत हैं
'पच्छेकम्म' 'असहेज्ज' ये दोनों आर्ष प्रयोग हैं। इनमें जो 'एकार' है, वह व्याकरण सिद्ध नहीं है।
'आउंटणं'--इस प्रयोग में जो 'चकार' को 'टकार' वर्णादेश है, वह व्याकरणसिद्ध नहीं हैं।"
'अहक्खाय', 'अहाजायं'-प्राकृत व्याकरण के अनुसार आदि के 'यकार' को 'जकार' वर्णादेश होता है। किन्तु आर्ष-प्रयोग में 'य' का लोप भी हो जाता है। ये दोनों प्रयोग इसके उदाहरण हैं ।२१
'दुवालसंगे'-प्राकृत व्याकरण के अनुसार इस प्रयोग में लकार वर्णादेश प्राप्त नहीं हैं, किन्तु आर्ष में ऐसा प्रयोग मिलता है ।११
_ 'इक्खू, खीरं, सारिक्खं'-ये आर्ष प्रयोग हैं। प्राकृत व्याकरण के अनुसार अक्ष्यादि गण के संयुक्त 'क्ष' को 'छकार' आदेश होता है। जैसे उच्छू, छीरं, साहिच्छं।"
प्राकृत भाषा में सामान्यत: 'क्ष' को 'ख' कार आदेश होता है । आर्ष प्रयोगों में प्रायः वही मिलता है। - आर्ष प्रयोग में 'ध्य' को चकार आदेश होता है। जबकि प्राकृत व्याकरण से उसे छकार आदेश किया गया है ।
प्राकृत व्याकरण में 'श्मशान' का 'मसाण' रूप बनता है। आर्ष प्रयोग में इसके दो रूप मिलते हैं-सीआण, सुसाण ।"
प्राकृत में स्रोत शब्द का सोत्तं रूप बनता है किन्तु आर्ष में 'पडिसोओ', 'विस्सोअसिआ'-रूप भी मिलते हैं।"
आर्ष-प्रयोग में संयुक्त वर्ण के अन्त्य व्यञ्जन से पूर्व 'अकार' होता है । तथा 'उकार' भी होता है।"
आर्ष-- प्रयोग में 'किरिया' पद का 'किया' रूप भी मिलताहै।" आर्ष--प्रयोग में द्रह शब्द का 'हरए' रूप मिलता है। 'कटु'-यह आर्ष प्रयोग है।"
निपात प्रकरण में आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है कि आर्ष प्रकरण में जो प्रयोग बंड-२३, अंक-३
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