Book Title: Tulsi Prajna 1997 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 187
________________ ३. डॉ० श्यामसुन्दर निगम, निदेशक, श्री कावेरी शोध संस्थान, उज्जैन, जो वहीं से प्रकाशित–'शोध समवेत' के सम्पादक भी हैं, लिखते हैं। 'Sir, We are fully aware of your sincere devotion to the academic cause and the contribution made by you, your Journal and the Jain Vishva Bharati Institute to the cultural and intellectual world. We are having in our Institute many back volumes of Tulasi Prajna'. ४. जैन जगत् के वयोवृद्ध विद्वान् पं० अमृतलाल शास्त्री, वाराणसी से लिखते 'विज्ञवर डॉ० सोलंकीजी, 'तुलसी प्रज्ञा' का अंक यथा समय प्राप्त हुआ। इसके सभी आलेख शोधपूर्ण सामग्री से विभूषित हैं । आपकी लेखन शैली अद्भुत है। यदि कोई आलेख न भी रहे तो आप अपने विविधविध शोध आलेखों से प्रस्तुत शोध पत्रिका को परिपूरित कर सकते हैं। आपकी विद्वत्ता आपकी याद दिला रही है और पूरे जीवन के अन्त तक दिलाती ही रहेगी। ५. श्री जयनारायण गौड़, सेवा निवृत्त आई० ए० एस०, जयपुर से लिखते हैं। 'प्रिय भाई सोलंकीजी, 'तुलसी प्रज्ञा' की दो तीन रचनायें तो मैंने आद्योपांत पढ़ ली हैं तथा शेष को भी सरसरीतौर से देख चुका हूं। यह शोध पत्रिका अपने नाम को सार्थक करती है क्योंकि सब कृतियों से उनके लेखकों का गहन अनुसंधान स्पष्ट झलकता है। इस पत्रिका की दूसरी विशिष्टता यह भी है कि यह केवल जैन साहित्य या धर्म तक ही सीमित नहीं है।' ६. वयोवृद्ध प्रोफेसर प्रतापसिंह, उदयपुर से लिखते हैं । 'श्रीमान् डॉ० सोलंकीजी, आपकी भेजी 'तुलसी प्रज्ञा' की कर्मवाद विशेषांक की प्रति प्राप्त हुई। बहुतबहुत धन्यवाद। इसके स्वाध्याय का आनंद ले रहा हूं। आपके लेख व संपादकीय ने विषय पर अच्छा प्रकाश डाला है। जीव के ज्ञानत्व व संवेदनत्व का विश्लेषण अच्छा लगा।' ७. 'यग लीडर'-हिन्दी दैनिक, अहमदाबाद के संपादक जिनेन्द्र कुमार लिखते हैं। 'भाई श्री परमेश्वरजी, आज मुझे 'तुलसी प्रज्ञा' का पूर्णाङ्क १०१ प्राप्त हुआ। आपका स्मरण हो आया । आप प्रखर विद्वान हैं। समाज ने आपकी योग्यता-दक्षता का मूल्यांकन नहीं किया। फिर भी श्री जैन विश्व भारती में आपको अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला है और मुझे खुशी है कि आप पूरी निष्ठा से अपनी भूमिका निभा रहे हैं। भगवान् वीर प्रभू से कामना करता हूं कि आप इसी प्रकार जीवन पर्यन्त स्वस्थ-प्रसन्नसक्रिय बने रहें।' -प्राप्त हुए पत्रों से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 185 186 187 188