________________
हेमचन्द्र का विहार स्थल भी मुख्यत: गुजरात था। वह महाराष्ट्र का समीपवर्ती प्रदेश है। उन्होंने महाराष्ट्री के प्रचलित प्रयोगों को अपने प्राकृत व्याकरण में प्रमुख स्थान दिया । अर्धमागधी के उन प्राचीन रूपों, जो उस समय तक आगमों में सुरक्षित थे, को आर्ष प्रयोग के रूप में उल्लिखित किया। मूलतः प्राचीन आगम-सूत्रों (आयारो, सूयगड, उत्तरज्झयणाणि आदि) की भाषा महाराष्ट्रीय नहीं थी, किन्तु उत्तरकालीन आगमों तथा उनके व्याख्या ग्रंथों की भाषा महाराष्ट्री हो गई। सभी जैनागमों की भाषा न अर्धमागधी है और न महाराष्ट्री। आर्ष प्राकृत का अध्ययन करते समय यह तथ्य विस्मृत नहीं होना चाहिए ।
! सन्दर्भ स्थल :
१. समवाओ, ३४।२२.२३ जैन विश्व भारती लाडन, राजस्थान, १९८७
भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्माइक्खइ। सावि य णं अद्धमागही भासा भासिज्जमाणी तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं दुप्पय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खिसिरिसिवाणं अप्पणो हिय-सिव-सुहदाभासत्ताए परिणमइ । २. ओवाइयं, सूत्र ८१ पृ० ४६, जैन विश्व भारती लाडनूं, राजस्थान, १९८७ । ३. अलंकार तिलक, १११ सर्वार्धमागधीं सर्वभाषासु परिणामिनीम् । सार्वीयां सर्वतोवाचं सावंज्ञी प्रणिदध्महे । ४. भगवई, ५१९३
देवा णं अद्धमागहाए भासाए भासंति । ५. पण्णवणा, १९९८
से किं तं भासारिया ? भासारिया जे णं अद्ध मागहाए भासाए भासिति । जत्थ वि य ढं बंभी लिवी पवत्तइ । ६. निशीथचूणि
मगदद्ध विसयभासणिबद्ध अद्धमागहं
अट्ठारसदेसीभासाणियतं वा अद्धमागहं । ७. षट्प्राभृतटीका, पृ० ९९ सर्वाद्धं मगधीया भाषा भवति । कोऽर्थः ? अद्धं भगवद्भाषाया मगधदेशभाषा
त्मकं, अद्धं च सर्वभासात्मकम् । ८. समवायांगवृत्ति, पत्र ५९ प्राक्रतादीनां षण्णां भाहाविशेषाणां मध्ये या मागधी नाम भाषा 'रसोर्लशो'
मागध्यामित्यादिलक्षणवती सा असमाश्रितस्वकीयसमग्रलक्षणाऽर्द्धमागधीत्युच्यते । ९. नायाधम्मकहाओ, ११११८८ जन विश्व भारती लाडनूं, राजस्थान, वि० सं०
२०३१ । खण्ड २३ अंक ३
३७१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org