Book Title: Tulsi Prajna 1997 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 112
________________ ज्ञान १ नामक इनका एक प्रश्न ग्रंथ है । यह उनका स्वतंत्र ( मौलिक ) ग्रंथ है । 'आर्या सप्तति', 'प्रश्नार्या', 'प्रश्नार्या सप्तति', 'प्रश्न ग्रंथ' आदि इसके अन्य प्रचलित नाम रहे हैं । इस ग्रंथ का वर्ण्य विषय प्रश्न विद्या है। कुछ हस्तलिखित पोथियों की पुष्पिकाओं से ज्ञात होता है कि यह उत्पल के 'ज्ञानमाला' नामक बृहत्तर ग्रंथ का अंश था बृहत्संहिता के प्रथमाध्याय में इन्होंने एक स्थान पर 'अस्मदीयवचन' कहकर एक आर्या लिखी है । इससे अनुमान होता है कि गणित स्कन्ध पर इनका स्वतंत्र ग्रंथ रहा होगा । यह वचन उनकी खण्ड खाद्य की टीका का भी हो सकता है। इसी प्रकार बृहत्संहिता के ही ५२ / ५७ पर तथा 'चास्मदीय वास्तु विद्यायाम्' इस परिचयात्मक वाक्य के बाद वास्तु विद्या विषयक एक ग्रन्थ से दो श्लोक उद्धृत है । ये ग्रंथ सम्प्रति उपलब्ध नहीं है । इनके अतिरिक्त अलबेरूनी ने इनके नाम से कुछ अन्य कृतियों का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है- १. राहुन्नाकरण, २. करण पात, ३. मनु रचित बृहन्मानस की टीका, ४. प्रश्न -चूड़ामणि और ५. श्रुधव । " ज्योतिषियों में प्राय: एक ही करण ग्रन्थ लिखने की प्रथा थी । अतः उत्पल द्वारा भी दो करण ग्रन्थों की रचना संभव नहीं है और इनके नाम भी विचित्र हैं । प्रतीत होता है वेरूनी को इनके विषय में कुछ भ्रम हुआ है। प्रश्न चूड़ामणि, प्रश्न ज्ञान नामक ग्रन्थ से अभिन्न होना चाहिए, क्योंकि प्रश्न चूड़ामणि और प्रश्न ज्ञान एक ही ग्रन्थ के दो नाम प्रतीत बेरूनी ने कालादिमान लिखे हैं । इसके नाम में कुछ अशुद्धि है । उसका कथन है कि श्रूधव नाम के और भी ग्रन्थ हैं। वैसे यह नाम है विचित्र । श्रूधव के विषयों का स्वरूप थोड़ा सा बेरूनी ने दिया भी है। उससे ज्ञात होता है कि वे शकुन या प्रश्न के ग्रन्थ होंगे । होते हैं । श्रृधव से भट्टोत्पल ने कल्याण वर्मा द्वारा रचित 'सारावली' नामक अपूर्ण ग्रन्थ को भी पूर्ण किया था । उसके हस्तलेखों के अन्त में दिए गए एक श्लोक से यह तथ्य ज्ञात होता है ।" वादरायण प्रश्न पर भी चिंतामणि नामक उनकी टीका पाई जाती है । 'उत्पल', वराहमिहिर के सुप्रसिद्ध टीकाकार हैं । मौलिक ग्रन्थों की अपेक्षा वे अपनी पाण्डित्य पूर्ण टीकाओं के लिए अधिक विख्यात हैं । यद्यपि यह सत्य है कि बृहत्संहिता और बृहज्जातक ग्रन्थ स्वयं महत्त्वयुक्त होने के कारण आज तक प्रचलित हैं तथापि उनके प्रचार का प्रमुख कारण उत्पल की टीका है, ऐसा कह सकते हैं । वास्तविकता तो यह है कि वराहमिहिर को समझने के लिए उत्पल की टीकाओं का वही महत्व है, जो कालिदास के लिए मल्लिनाथ की टीका का है । अतः उसके महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता । बृहत्संहिता टीका से ज्ञात होता है कि उत्पल ने प्राचीन ग्रन्थों का गहरा अध्ययन किया था । वराहमिहिर ने जिन प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर वृहत्संहिता की रचना की थी, उन सब ग्रन्थों के अवतरण देकर इन्होंने अपनी टीका की रचना की है । उन्होंने तद् विषयक प्राचीन संहिताकारों के आधार भूत वचन उद्धृत ३६२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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