Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 4
________________ प्रस्ताविक दो शब्द इस पुस्तक में ग्रहण किये हुए प्राचीन तीर्थमालाएं और चैत्य परिपाटियां अपने हाथ से शिलानों ऊपर से लिखी हैं । अगर कोई शिला खोदने में भूल हुई होगी तो भी लिखने के समय उस भूल को भी ठीक कर दिया गया है। खास विचारणीय बात इतनी है कि इन तीर्थमालाओं के मुद्रण होने के समय में इनके प्रूफ हम नहीं देख सके इसके कारण से गलती रह गई हो तो पाठकगण पढ़ते समय भूल को सुधार कर पढ़ें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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