Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 6
________________ प्रकाशकीय महासभा से प्रकाशित गौरवग्रन्थ 'तिलोयपण्णसो' की हिन्दी टीका का यह तृतीय खण्ड आपके हाथों में अर्पित करते हुए में विशेष आह्लादिन हूँ। प्रथम खण्ड का प्रकाशन जुलाई १९८४ में और द्वितीय खण्ड का प्रकाशन अप्रेल १९८६ में हुअा था। दोनों खण्डों की सर्वत्र अनुशंसा की गई। पहले खण्ड में तोन अधिकार थे, चौथे अधिकार का द्वितीय खण्ड था, शेष पाँच महाधिकार (पांच से नौ ) इस तृतीयखण्ड में सम्मिलित हैं। महासभा का प्रकाशन विभाग परम पूज्य प्रायिका १०५ श्री विशुद्धमती माताजी के चरणों में शतशः नमोस्तु निवेदन करता है जिनके प्रौढ़ ज्ञान का सुफल हमें ग्रन्थराज तिलोयपणती की टीका के रूप में उपलब्ध हुआ है । शारीरिक अस्वस्थता की चिन्ता न करते हुए पूज्य प्रायिका श्री ने निरन्तर ६-७ वर्ष तक घोर श्रम करते हुए इस कठिन गणितीय अन्ध की तीन वृहदकाय जिल्दों में जो सरल हिन्दी टीका निर्मित की है, उनका यह महत्वपूर्ण अवदान चिरस्मरणीय रहगा । हम आशा करते हैं कि पूज्य मायिकाश्री मां जिनवाणी की सेवा में संलग्न रहकर हमें इसी प्रकार उपकृत करती रहेंगी । हम उनके स्वस्थ दोषं जोवन की कामना करते हैं। ग्रन्थ के सम्पादक डॉ. चेतन प्रकाशजी पाटनी, जोधपुर के हम विशेष आभारी हैं जिन्होंने विविध कार्यों की व्यस्तता के बावजूद पर्याप्त समय निकाल कर इस वृहद कार्य को बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है। उनकी प्रतिभा और क्षमता निरन्तर विकसित होती रहे, यही कामना है। पुरोवाक् लेखक पं० पशलालजी साहित्याचार्य, सागर और गणित के विद्वान् प्रो० लक्ष्मीचन्दजी जैन,जबलपुर के भी हम आभारी हैं जिनका इस ग्रन्थ राजके प्रकाशनमें पर्याप्त सहयोग रहा है । तिलोयपण्णत्ती' के तीनों खण्डों के प्रकाशन में माननीय श्रीमान् निर्मलकुमारजी सेठी अध्यक्ष, महासभा से हमें विपुल अर्थ सहयोग प्राप्त हुमा है । 'सेठो दृस्ट' से प्राप्त धनराशि के लिए हम उनके अतिशय अनुगृहीत हैं । अन्य दातारों से प्राप्त धनराशि के लिए हम उनका सादर प्राभार मानते हैं और कामना करते हैं कि जिनवाणी के प्रचार प्रसार में उनकी चंचला लक्ष्मी का सदुपयोग इसी प्रकार होता रहे । माताजी के संघस्थ कजोड़ीमलजी कामदार का इस ग्रंथ प्रकाशन में अविस्मरणीय सहयोग रहा है । इस वृहद अनुष्ठान में आने वाली मड़चनों को आपने अपने अनुभव एवं सूझबूझ से अविलम्ब दूर किया है । एतदर्थ हम आपके आभारी हैं। _इस गणितीय जटिल ग्रंथ को बड़ी धीरता से कमल प्रिन्टर्स, मदनगंज ने मुद्रित किया है। ग्रन्थ के तीनों खण्डों के सुरुचिपूर्ण एवं शुद्ध प्रकाशन के लिए हम श्री पांचूलालजी बंद एवं प्रेस कर्मचारियों को हार्दिक साधुवाद देते हैं । आशा है, स्वाध्यायोजन महासभा के इस गरिमापूर्ण प्रकाशन से विशेष लाभान्वित होंगे। इति शुभम् ! महावीर जयन्ती राजकुमार सेठी ३१-३.८८ मंत्रो, प्रकाशन विभाग श्री भा० दि. जैन महासभा

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