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तिलकमञ्जरी के पात्रों का चारित्रिक सौन्दर्य
अपनी पत्नी प्रियङ्गसुन्दरी का चंद्रातप नामक दिव्यहार यह कहकर मेघवाहन को दे देता है कि कदाचित् प्रियङ्गसुन्दरी को भी इस हार को देखने का अवसर प्राप्त हो जाए और वह अपने पूर्वजन्म को याद करके शुभ कर्मों में प्रवृत्त हो सके। इस से यह भी ध्वनित होता है कि दूसरे जन्म में यह हार ही ज्वलनप्रभ व प्रियङ्गसुन्दरी के पुनर्मिलन का कारण बनेगा। विद्याधर मुनि मुनि स्वभाव से ही दयालु व परोपकारी होते है। वे कभी किसी को दु:खी नहीं देख सकते। सदैव परार्थ सम्पादन में ही रत रहते है। विद्याधर मुनि भी स्वभाव से कोमल हैं। मेघवाहन को दु:खी देखकर ये उसे पुत्र प्राप्ति का उपाय बताते है। अन्य पुरुष पात्र : इन पात्रों के अतिरिक्त भी अनेक गौण पुरुष पात्र है, जो कथावस्तु में अपने-अपने स्थानों पर अपना महत्व रखते हैं जैसे कमलगुप्त, विजयवेग, चित्रमाय, अनङ्गरति, चक्रसेन, महोदर, विराध, शाक्यबुद्धि, मित्रधर आदि।
इन पात्रों का अपने स्थान पर महत्व अवश्य है, परन्तु ये कथावस्तु की गतिशीलता में कोई विशेष योगदान नहीं देते। कमलगुप्त कलिङ्ग देश का राजकुमार है और हरिवाहण का मित्र व उसका विश्वासपात्र हैं। हरिवाहन समरकेतु के साथ निकलते समय छावनी का भार इस पर ही छोड़ते है। विजयवेग वज्रायुध का परम विश्वासपात्र सेवक है। यह व्रजायुध को दिव्य अंगुलीयक पहनाकर उसकी रक्षा करता है। यह मेघवाहन के समक्ष सम्पूर्ण युद्ध वृत्तान्त को प्रस्तुत करता है। चित्रमाय गन्धर्वक का सहचर है। यह रूप बदलने में निपुण है। यह हाथी का रूप धारण करके हरिवाहन को तिलकमञ्जरी के पास ले जाता है। अनङ्गरति एक विद्याधर है। विद्याधरों के सम्राट विक्रमबाहु को विरक्त देखकर प्रधानसचिव शाक्यबुद्धि की योजना अनुसार यह हरिवाहन को मन्त्र सिद्धि के कार्य में प्रवृत्त करता है, जिससे वह विद्याधर सम्राट बनने की योग्यता प्राप्त कर ले। चक्रसेन विद्याधरों के सम्राट है और तिलकमञ्जरी के पिता है इन्हें अपनी पुत्री से अगाध प्रेम है। यह पुत्री द्वारा वरण किये गए हरिवहन को सहर्ष अपना जामाता स्वीकार कर लेते है। यह एक आदर्श पिता के उत्तम उदाहरण है। महोदर देवी