Book Title: Tilakmanjari Me Kavya Saundarya
Author(s): Vijay Garg
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan2017

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Page 233
________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य 209 मध्य विचरण करने वाले तारा समूह रूपी मछलियों को अन्धकार रूपी जाल से अपने किरण रूपी हाथों से खींच रहा है। यहाँ धनपाल ने प्रात:काल का अतिसुन्दर चित्रण किया है। उपमा, उत्प्रेक्षा व रूपक अलङ्कारों के प्रयोग से प्रातः कालिक सूर्य व चन्द्रमा का वर्णन अत्यन्त रमणीय बन गया है। वर्णनीय वस्तु का विषय-विभाजन कुन्तक ने विषय की दृष्टि से भी वर्णनीय वस्तु का विभाजन किया है। इनके अनुसार सरस स्वभाव के औचित्य से रमणीय चेतन एवं अचेतन पदार्थों का दो प्रकार का स्वरूप विद्वानों द्वारा स्वीकार किया गया है। इनमें चेतन पदार्थ देवादि तथा सिंहादि के प्राधान्य एवं अप्राधान्य के कारण पुनः दो प्रकार के हो जाते हैं। इनका रेखाचित्र निम्नवत् है - वर्णनीय वस्तु चेतन अचेतन (प्राकृतिक पदार्थ) प्रधान अप्रधान (देवता, मनुष्य आदि) (पशु, पक्षी आदि) कुन्तक ने चेतन देव, राक्षस, गन्धर्व, विद्याधर आदि को काव्य का मुख्य विषय अर्थात् प्रधान कहा है। सिंह आदि पशु-पक्षी गौण विषय होने के कारण अप्रधान कहे गए हैं। कुन्तक के अनुसार सुकुमार रति आदि के परिपोष से हृदयावर्जक प्रधान चेतन पदार्थो का स्वरूप तथा अपनी जाति के अनुरूप स्वभाव के सम्यक् निरूपण से सुशोभित होने वाला गौण अचेतन पदार्थों का स्वरूप 82. भावानामपरिम्लानस्वभावौचित्यसुन्दरम्। चेतनानां जडानां च स्वरूपं द्विविधं स्मृतम्।। व. जी. 3/5 83. तत्र पूर्व प्रकाराभ्यां द्वाभ्यामेव विभिद्यते । सुरादिसिंहप्रभृतिप्राधान्येतरयोगतः ।। वहीं 3/6

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