Book Title: Tilakmanjari Me Kavya Saundarya
Author(s): Vijay Garg
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan2017

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Page 252
________________ 228 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य अवलम्बन कर उन विषयों को प्रभावोत्पादक बना दिया है। तिलकमञ्जरी से पाञ्चाली शैली के कुछ और सुन्दर उदाहरण निम्नलिखित हैं - (i) देव्यापि कमलया कामकेलिक्लान्तिहारी हरेरिति धृतो धृतिमत्या महान्तं कालम्। तयापि परिरम्भविभ्रमेषु निबिडपीडिताखण्डलोरसः सुरगज कुम्भपीठपृथुनो निजस्तनमण्डनस्य कृत्वातिदीर्घकालं मण्डनमर्पितः सखीप्रेमहतहृदयया मत्प्रियायाः प्रियङ्गसुन्दर्याः कण्ठदेशे । तयाप्यतिशयित शीतरश्मिरोचिषमस्य शुचितागुणं शचीप्रसादं च बहुमन्यमानयामुक्त्वान्यानि कंधराभरणानि धारितः सुचिरम् । पृ. 43 (ii) यत्र मधुकरध्वनिपटुहुंकाराणि समुल्लसत्सरससहकारमञ्जरीत निकानि कृततर्जनानीव प्रियकरोत्क्षिप्तासु मुक्ताशुक्तिषु विलोकयन्ति तालफलरसमधूनि ध्वस्तमानावलेपा विलासिन्य । यत्र सुलभनागवल्लीदलार्द्रपूगीफलानि क्वणत्कुररकुलकलध्वनिवर्धितानङ्गोत्साहानिसंनिहितचन्दनशिशिरदीर्धिकातरङ्गपव नानि वनानि निधुवनानि च निषेवन्ते समं वनितासखाः सुखिनः । पृ. 261 धनपाल वैदर्भी और पाञ्चाली के साथ-साथ गौड़ी शैली के प्रयोग में भी निपुण हैं। गौड़ी शैली दीर्घ समास प्रधान होती है।" वामन के अनुसार गौड़ी रीति ओज और कान्ति गुण युक्त होती है।" धनपाल प्रसङ्गानुसार विकट वर्णनों में गौड़ी शैली का भी आश्रय लेते हैं। धनपाल का मत है कि अति दीर्घ समास युक्त रचना से रसास्वादन में व्यवधान उत्पन्न होता है।" धनपाल ने तिलकमञ्जरी में वर्णनानुकूल दीर्घ समासों का प्रयोग किया है। परन्तु समास बहुलता का परित्याग किया है गौड़ी शैली के उदाहरण प्रस्तुत है - __ अथाधुनैवाधिगतविद्याधरेन्द्रभाव:संकल्पानन्तरोपनतमनल्पवातायनसहस्रालंकृतममलचीनांशुकवितानलम्बमानमुग्धमौक्तिकप्रालम्बमनिलदोलायमानद्वारवन्द नमालाप्रवालमुपहारकुसुमसौरभाध्वमधुकरझङ्कारमुखरमणिकुट्टिमं विमानमधिरुह्य विदग्धवल्लभाप्तसुहृत्कदम्बकानुयातो विलोकयन्विविधान्याश्चर्याणि सशैलद्वीपकाननामुदधिमर्यादां मेदिनी पर्यटसि । पृ. 57 __ यहाँ मेघवाहन को वर प्रदान करने के लिए आई हुई लक्ष्मी का वर्णन किया 12. शब्दाः समासवन्तो भवति यथाशक्ति गौड़ीया । का. ल., 2/5 13. ओजः कान्तिमती गौडीया। का. सू. वृ., 1/2/12 14. अखण्डदण्डकारण्यभाजः प्रचुरवर्णकात् ।। व्याघ्रादिवभयाघ्रातो गद्याव्यावर्तते जनः ।। ति. म., भूमिका, पद्य 15

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