Book Title: Tilakmanjari Me Kavya Saundarya
Author(s): Vijay Garg
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan2017

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Page 260
________________ 236 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य अष्टम अध्याय में तिलकमञ्जरी की भाषा शैली की विवेचना की गई है। वर्णनानुकूल भाषा कवि के मनोगत भावों को रमणीय ढंग से सहृदय तक सम्प्रेषित करती है। सुकवि वर्णनानुकूल वर्ण संयोजन व भाषा शैली से अपनी रचना को प्रभावोत्पादक बनाता है। धनपाल को अपने समय में प्रचलित शैलियों का पूर्ण ज्ञान था। दण्डी, सुबन्धु तथा बाण प्रभृति कवियों की गद्य रचनाएँ तथा उनके गद्य आदर्श भी उसके समक्ष थे। धनपाल ने उनकी गद्य शैलियों की समीक्षा कर तिलकमञ्जरी में गद्य काव्य के लिए अपने आदर्शों को प्रस्तुत किया है। धनपाल ने श्लेष बहुलता को काव्यरसास्वाद में बाधक माना है। उनके अनुसार अतिदीर्घ समास रचना भी सहृदय के मन में भय का सञ्चार करती है। इसलिए धनपाल ने तिलकमञ्जरी में अतिदीर्घ समासों तथा श्लेष बहुलता का परित्याग किया है। धनपाल ने कोमल वर्णनों में कोमल तथा ओजस्वी वर्णनों में ओजपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है। तिलकमञ्जरी की भाषा सुबोध, प्राञ्जल तथा प्रवाहमयी है। साररूप में यह कहा जा सकता है कि तिलकमञ्जरी में प्रतिभासम्पन्न धनपाल के उत्कट पण्डित्य का सुष्ठु निदर्शन होता है। काव्य सौन्दर्यात्मक तत्त्वों रूपी निकष पर परीक्षा करने पर तिलकमञ्जरी सर्वत्र अपने सौन्दर्य की स्वर्णिम आभा को प्रकट करती है। इससे यह स्पष्ट है कि तिलकमञ्जरी गद्य साहित्य का अमूल्य रत्न है।

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