Book Title: Tilakmanjari Me Kavya Saundarya
Author(s): Vijay Garg
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan2017

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Page 257
________________ उपसंहार _233 हैं, दूसरे शब्दों में वे सौन्दर्य का मूर्त रूप है। वात्स्यायन ने सौन्दर्य के मूल को पहचान कर कलाओं का अति सूक्ष्म विभाजन किया है। उन्होंने कामसूत्र में कलाओं की संख्या 64 बताई है। भारतीय परम्परा में सौन्दर्यतत्त्व, कलाओं से विच्छिन्न कोई भिन्न तत्त्व नहीं है। वह सभी कलाओं में अनुस्यूत उनका प्राण तत्त्व है। जो सुन्दर नहीं है, वह कला ही नहीं है। ___ काव्य सौन्दर्य का अध्ययन क्षेत्र काव्य तथा उसके तत्त्वों के अध्ययन तक सीमित है। काव्यकला को सभी कलाओं में सर्वोत्तम माना गया है। कवि को जैसा रुचिकर प्रतीत होता है काव्य जगत् उसी रूप में परिवर्तित हो जाता है। मम्मट ने भी कवि की सृष्टि को ब्रह्मा की सृष्टि से उत्कृष्ट कहा है। द्वितीय अध्याय में महाकवि धनपाल के व्यक्तित्व और कृतित्व से सम्बन्धित है। धनपाल का जन्म मध्यप्रदेश के काश्यपगोत्रिय ब्राह्मण के कुल में हुआ था। इनके पिता तथा पितामह समस्त शास्त्रों के अध्येता तथा वैदिक कर्मकाण्ड में निपुण थे। पारिवारिक वातावरण अध्ययनात्मक होने के कारण धनपाल की शास्त्राध्ययन में रुचि स्वतः ही हो गयी थी। आरम्भ में ये एक कट्टर ब्राह्मण थे। परन्तु बाद में जैन धर्म के सिद्धान्तों का ज्ञान होने पर ये जैन धर्म में दीक्षित हो गये थे। इनके समय के विषय में विद्वानों में अधिक मतभेद दृष्टिगोचर नहीं होता। उपलब्ध अन्त: व बाह्य प्रमाणों के आधार पर धनपाल का स्थितिकाल दशम शती के उत्तरार्द्ध तथा ग्यारहवी शती के पूर्वार्द्ध के मध्य निश्चित होता है। धनपाल नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा सम्पन्न कवि थे। इन्होंने वेद-वेदाङ्गों का गहन अध्ययन किया था। ये आयुर्वेद, समुद्रकला, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र, साहित्यशास्त्र, चित्रकला, संगीत कला आदि के पूर्ण ज्ञाता थे। इस प्रकार धनपाल मम्मट सम्मत लोकव्यवहार, शास्त्र, दर्शन, ग्रन्थों व महाकाव्यों के पर्यालोचन से उत्पन्न व्युत्पत्ति से युक्त थे। इनकी प्रतिभा को देखकर राजा मुञ्ज ने इन्हें 'सरस्वती' उपाधि से सम्मानित किया था। धनपाल ने अपने पाण्डित्य के बल पर ही राजा भोज की राजसभा में भी अत्युच्च स्थान प्राप्त किया था। धनपाल न केवल संस्कृत अपितु प्राकृत व अपभ्रंश के भी अन्यतम विद्वान् थे। धनपाल की रचनाओं में से तीन संस्कृत में, चार प्राकृत में, एक अपभ्रंश में तथा एक संस्कृत-प्राकृत में है। तिलकमञ्जरी इनकी उत्कृष्ट विद्वत्ता तथा सहज प्रतिभा का अनुपम निदर्शन है।

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