Book Title: Tilakmanjari Me Kavya Saundarya
Author(s): Vijay Garg
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan2017

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Page 239
________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य 215 करने की उसकी क्षीण इच्छा पुनः बलवती हो जाती है। विशिष्ट प्रकरण की अतिरञ्जना : प्रत्येक प्रकरण में कवि की परिपक्व प्रतिभा की परिपूर्णता से सम्पादित, पूर्णतया नवीन प्रकार से उल्लिखित रसों एवं अलङ्कारों से सुशोभित एक ही पदार्थ का स्वरूप बार-बार उपनिबद्ध होकर आश्चर्य को उत्पन्न करने वाले वक्रता की सृष्टि से उत्पन्न सौन्दर्य को पुष्ट करता है।" सामान्यतः एक ही पदार्थ का पुनः पुनः वर्णन होने पर पुनरुक्ति दोष होता है। इस विषय में कुन्तक का मत है कि जहाँ एक पदार्थ के बार बार वर्णन में, हर बार नवीन व चमत्कार की सृष्टि से काव्य में वैचित्र्य का सन्निवेश हो, वहाँ प्रकरण वक्रता होती है। मेघवाहन के पुत्राभाव रूप दु:ख के बार-बार वर्णन से करुण रस पुनः पुनः दीप्त होता है। करुण रस के पुनः पुनः दीपन से सहृदय मेघवाहन के दुःख से स्वयं को भी दु:खी पाता है। धनपाल ने अपने काव्य-कौशल से करुण रस की प्रत्येक बार नवीन प्रकार से ऐसी अभिव्यञ्जना करवाई है कि सहृदय को मेघवाहन का दुःख पुनः पुनः नवीनता धारण करता प्रतीत होता है - नूतनेऽपि वयसि महत्यप्यन्तःपुरे बहुनापि कालेन नैकोऽप्युदपादि तनयः। ... 'नाथ, कस्यचित्काचिदस्ति गतिः अहमेव निर्गतिका कुरु सत्साम्प्रतं मदुचितम्' इति सखेदया संतानार्थमभ्यर्थितस्येव भुजलग्नया भुवा, 'देव, त्वद्वश्येन गोप्ता विना कालान्तरे बलवदरातिहठविलुप्यमानाभिः शरणाय क: समाश्रयणीयोऽस्माभिः इति विज्ञापितस्येव चित्तस्थिताभिः प्रजाभिः, ... 'विद्वन्, किमपरैस्त्रातैः। आत्मानं त्रायस्व पुंनाम्नो नरकात्' इव प्रादुरभवदस्य चेतसि चिन्तासंज्वरः। पृ. 20-21 हरिवाहन को तिलकमञ्जरी की विरह वेदना बार-बार प्रताड़ित करती है। धनपाल ने कामार्त हरिवाहन की इस दशा का कुशलतापूर्वक वर्णन किया है। प्रत्येक बार नवीन उद्भावन से वर्णन में नवीनता व रमणीयता का सन्निवेश हो 90. ति. म., पृ. 242-250 91. प्रतिप्रकरणं प्रौढ़प्रतिभाभोगयोजितः। एक एवाभिधेयात्मा बध्यमानः पुनः पुनः।। अन्यूननूतनोल्लेखरसालङ्कारणोज्जवलः। बध्नाति वक्रतोद्भेदभङ्गीमुत्पादिताद्भुताम्।। व. जी., 4/7, 8

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