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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य के धन का हरण किया जाता था, कामदेव वाणे की ही हृदय भेदन में आसक्ति था, न कि किसी का विद्वेष वश मर्म छेदन किया जाता था। विष्णु भक्तों का ही विष्णूपदिष्ट आचार पद्धति का प्रवेश होता था, न कि किसी का अपवित्र मार्ग में प्रवेश होता था।
__यहाँ पर परिसंख्या अलङ्कार के प्रयोग से अयोध्या नगरी की उत्कृष्टता तथा वहाँ के निवासियों की सच्चरित्रता व्यञ्जित हो रही है। अतः यहाँ पर परिसंख्यालंकारौचित्य है।
विरोधाभास अलङ्कार धनपाल को बहुत प्रिय है। प्रत्येक वर्णन में कहीं न कहीं विरोधाभास अलङ्कार का प्रयोग प्राप्त हो जाता है। अदृष्टपार सरोवर के वर्णन में विरोधाभास अलङ्कार की सहज छटा दर्शनीय है
मद्गुरुतरुचितमपि नमद्गुरुतरुचितम्, बकैरवभासितमपि नवकैरवभासितम् विषैकसदनमप्यमृतमयम् ...अदृष्पाराभिधानं सरो दृष्टवान्। पृ. 205
जल पक्षियों के शब्द से मनोहर होने पर भी जल पक्षियों के रव से मनोहर नहीं था (विरोध परिहार हेतु-फल सम्पदा से झुके हुए विशाल वृक्षों से व्याप्त था), बगुलों से सुशोभित होने पर भी बगुलों से सुशोभित नहीं था। (विरोध परिहार हेतु-नवीन कुमुदों से सुशोभित था) विष का एक निवास स्थान होने पर भी अमृतमय था। (विरोध परिहार हेतु- कमलों के तन्तुओं और मृणलों-जड़ों का एक सदन होने के कारण अमृत समान स्वादिष्ट जल वाला था, ऐसे अदृष्टपार नामक सरोवर को देखा)। ___ यहाँ पर प्रस्तुत अदृष्टपार सरोवर के स्वाभाविक वर्णन में विरोधाभासी वर्णन ने अपूर्व चमत्कार उत्पन्न किया है, अतः यहाँ पर विरोधाभास अलङ्कारौचित्य है।
आदि जिन की आराधना मे भी विरोधाभास की रमणीयता द्रष्टव्य हैसमरकेतु ने ऐसे ऋषभदेव की अर्चना की जो प्रणामार्थ आऐ हुए देवताओं के करोड़ों मस्तकालङ्करणों के स्पर्श से पराग (धुलि) युक्त होते हुए भी, पराग रहित थे विरोध परिहार-दराग (विषयादि अभिलाषा) रहित थे, अप्रमित धन को तिनके के समान त्याग देने पर भी अनन्त धन युक्त थे। विरोध परिहार-विघ्न जनक कार्यों