Book Title: Tilakmanjari Me Kavya Saundarya
Author(s): Vijay Garg
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan2017

View full book text
Previous | Next

Page 217
________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य 193 सम्राट् मेघवाहन समरकेतु के गुणों में अनुरक्त होकर उसे हरिवाहन का परम विश्वसनीय सहचर बना देते है। यहाँ मित्र के पर्यायवाची ‘सहचर' का प्रयोग किया गया है। सहचर का अर्थ है - साथ रहने व साथ चलने वाला। महाकवि धनपाल ने यहाँ सहचर पद का प्रयोग अतिशय अन्तरंगता को प्रदर्शित करवाने के लिए किया है। मनोगत भावों, विशेष कार्यों तथा प्रेमादि जैसे गोपनीय पर चर्चा किसी अत्यन्त अन्तरङ्ग मित्र से ही की जा सकती है। इसी अन्तरङ्गता तथा अपनत्व के व्यञ्जनार्थ ही यहाँ 'सहचर' का प्रयोग किया गया है। मित्र, साथी, सुहृत् आदि पर्यायों के होने पर यह वैचित्र्य उत्पन्न नहीं होता। अतः यह अभिधेय का अन्तरङ्ग पर्याय है। शरत्समये समन्ततः प्रचलितेषु विषमजलनिधिमध्यवासिनोऽपि कंसद्विष इव द्वीपावनीपालनिवहस्य निद्राक्षयमगच्छत। - पृ. 16 यहाँ महाकवि धनपाल ने विष्णु के पर्याय 'कंसद्विष' का चमत्कारी प्रयोग किया है। भगवान विष्णु ने दुष्ट कंस के नाश के लिए कृष्ण रूप में अवतार लिया था। श्री कृष्ण ने कंस का वध कर प्रजा को उसके अत्याचार से मुक्त करवाया था। कंसद्विष से मात्र विष्णु का ही बोध नहीं होता, अपितु, उसमें निहित अपार शक्ति-पुंज का भी ज्ञान होता है। कदाचिद्देव्या सार्धमारब्धस्पर्धः स्वपरिगृहीतानां गृहोद्यानवीरुधाम कालकुसमुमोद्गतिकारिणस्तांस्तान्दोहदयोगानदात् । पृ. 17 प्रकृत उदाहरण में मेघवाहन और मदिरावती की रति क्रीड़ा का वर्णन किया गया है। यहाँ महारानी मदिरावती के लिए प्रयुक्त 'देवी' पर्याय वैचित्र्य को उत्पन्न कर रहा है। देवी शब्द अभिधेय मदिरावती की अन्य रानियों से उत्कृष्टता का बोध करवा रहा है। यहाँ पर साम्राज्ञी कहने से वह तुलना रूप वैचित्र्य उत्पन्न नहीं होता। अतः 'देवी' वाच्यार्थ के अतिशय का पोषक पर्याय है। यस्य प्रलयकालबिभ्रमेष्वाजिमूर्धसु संजहार विश्वानि शात्रवाणि महाभैरवः कृपाण:। पृ. 14 यहाँ मेघवाहन की वीरता का वर्णन किया गया है। मेघवाहन की खड़ ने युद्धों में उसी प्रकार शत्रुओं को नष्ट किया, जिस प्रकार प्रलय के समय शिवजी विश्व

Loading...

Page Navigation
1 ... 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272