Book Title: Tattvabhagana
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf

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Page 3
________________ ( iv ) अब फरवरी १९९२ में श्री अमितगति आचार्य विचित 'तत्त्वभावा' वह मायिक पास मकालत कर रहे हैं ताकि स्वाध्याय प्रेमो बन्धु आत्म कल्याण कर सकें। ___ मालवा प्रान्त के राजा मुंज के गुरु आचार्य माधव सेन के शिष्य आ. नेमी सैन के परम शिष्य श्री १०८ आचार्य अमितगति ने 'तत्त्वभावना' अर्थात वहद सामायिक पाठ १२० श्लोकों में रचा और छोटा सामायिक पाठ अर्थात् भावना द्वित्रिशिका ३२ श्लोकों में रची। आप ११वीं शताब्दी के महान विद्वाम् कवि एवं वीतरागी संत थे। आपके रचे हुए ७ ग्रंथ प्राप्त हैं। १. सुभाषित रत्नसंदोह वि. सं. १०५०; २. धर्म परीक्षा वि. सं. १०७०, ३. पंचसंग्रह वि. सं. १०७३ में रचे थे; ४. उपासकाचार, ५. आराधना, ६. सामाजिक पय, ७. भावना कि त्रिशिका एवं तत्त्वभावना । प्रस्तुत ग्रंथ 'तत्त्वभावना' वैराग्य और आत्मज्ञान का भंडार है। इसका हिन्दी पद्यानुवाद एवं टोका ब्र• शीतलप्रसाद जी ने ४-१०-१९२८ असोज बदी ५ गुरुवार वीर सं. २४५४ वि. सं. १९८५ में रोहतक चातुर्मास में की थी। आपके लिखे एवं अनुवाद किये लगभग १०० ग्रंथ हैं। सभी सारभूत एवं आध्यात्मिक हैं। ब० जी का जन्म वि. सं. १९४५ में हुआ था। आप ३२ वर्ष की आयु में गृह त्याग कर जिनवाणी का प्रचार-प्रसार अन्तिम समय तक करते रहे। प्रथम बार यह ग्रंथ श्री मूलचंद किशनचंद कापड़िया ने सूरत से प्रकाशित कराया था। द्वितीय वति आचार्य देशभूषण जो ने जनवरी १९७३ में दिल्ली से प्रकाशित कराई। ग्रंथराज अप्राप्य होने की वजह से तृतीय वृत्ति प्रकाषित की जा रही है। जो अगणित संसार के दुःखों से छुटाकर बनन्त सुख स्वरूप

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