Book Title: Tattvabhagana Author(s): Mahavir Prasad Jain Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf View full book textPage 2
________________ प्रस्तावना सम्प्रत्यस्ति ने केवली किल कलो त्रैलोक्य चड़ामणिस्तवाचः परमासतेऽत्र भरतक्षेत्रे जगद्योतिका । सदलत्र्यधारिणो यति वरास्तेषां समालम्बनं, तत्पूजा जिनवाचिपुजन मतः साक्षाज्जितः पूजितः ।। ॥पद्मनन्दी पं० ॥ वसंमान कलिकाल में तीन लोक के पूज्य केवली भगवान जो राग-द्वेष से रहित ध्यान में लीन, समस्त पदार्थों के ज्ञाता और कर्ममल रहित है, जोवों को संसार पार उतारने में निमित्त हैं इस भरतक्षेत्र में साक्षात् नहीं हैं तथापि समस्त भरतक्षेत्र में जगत्प्रकाशिनी केवली भगवान की वाणी मौजूद है तथा उस वाणी के आधार स्तम्भ श्रेष्ठ रत्नत्रधारी मुनि भी हैं जो समस्त विषयों, आशाओं और आरम्भ से रहित होते हैं, सदैव ध्यान अध्ययन में रहते हैं, जिन भगवान की आज्ञा में चलने वाले हैं सच्चे गुरु हैं इसीलिए उन मुनियों की पूजन तो सरस्वती का पूजन है तथा सरस्वती का पूजन साक्षात् केवली भगवान् का तीर्थकर देव द्वारा प्रत्यक्ष देखी गई, दिव्यध्वनि में प्रस्फटित तथा गणधर द्वारा गुन्थित वह महान् आचार्यों द्वारा प्रसारित जिनवाणी को रक्षा हो इसी उद्देश्य से बिशम्बर दास महावीर प्रसाद जैन सर्राफ १३२५, चांदनी चौक, देहली-६ ने स्व० पूज्य ला० बिशम्बर दास जी बन, श्रीमती केसर देवी जैन, श्रीमती सुन्दरी देवी जैन, श्रीमती जैनो देवी जैन एवं श्रीमती विमला देवी जैन की पुण्य स्मति में फरवरी १९९२ में श्री अमितगति आचार्यकृत तत्त्वभावना प्रन्थ प्रकार शित कराया। . ..Page Navigation
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