Book Title: Tao Upnishad Part 06 Author(s): Osho Rajnish Publisher: Rebel Publishing House Puna View full book textPage 7
________________ शो की किताब, उपनिषद पर मनन, और भूमिका हेतु मेरा चयन? यह तो कोई मेल ही नहीं हुआ। लेकिन जैसा कि सारे ओशो प्रेमी जानते हैं, विचार यात्रा में ओशो सबके साथ हैं, सबसे उनका मेल है। शायद इसीलिए अवसर मुझे मिल रहा है। हमारे यहां बिना किताब पढ़े भूमिका लिखने का फैशन रहा है। मैं यह अपराध तो नहीं कर रहा हूं, लेकिन किताब पढ़कर जो पंक्तियां सूझी वो प्रस्तुत कर रहा हूं:“यदि मेरे कारण किसी अपने या पराए को कोई कष्ट होता है और मेरा मन उसे महसूस करता है तो, स्वयं को बचाने के लिए कष्टों को नियति और स्वयं को निमित्त मान लेता है कृष्ण की उपस्थिति तो मैं आंखें मूंदकर मान लेता हूं लेकिन मेरे मन के श्वेत और श्याम पक्ष यह कह-कहकर आपस में लड़ते हैं कि नियति हो या निमित्त पूरी गीता कहां पढ़ते हैं?" ओशो और लाओत्से में साम्य है। दोनों ने प्रकृति को, आदमी को खूब पढ़ा है। स्वयं को मथकर विचार दिए हैं। इसीलिए पंक्तियां, विचार हृदय पर अंकित हो जाते हैं। 0 जीवन की संपदा मुफ्त नहीं मिलती, कुछ चुकाना पड़ेगा। 0 विक्षिप्तता और विमुक्तता ये दो छोर हैं, बीच में खड़े हो तुम। 0 तुम्हारे साधु पुरुष छोटी-छोटी बातों में तुम्हें सुख नहीं लेने देते, क्योंकि वे बड़े कठोर हैं। । अपने केंद्र स्वयं हो जाओ तब जीवन में क्रांति संभव है।Page Navigation
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