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सूत्र संवेदना
न जानते हों, परोक्ष में उनके संबंधी कुछ भी निंदनीय बोला गया हो, जो शिष्य के ज्ञान में हो, परन्तु गुरु न जानते हों, काया से भी उनके आसन आदि को पैर लगने रूप क्रिया हुई हो, जो गुरु न जानते हों ।
४. मैं भी नहीं जानता, आप भी नहीं जानते ऐसा भी अपराध हो सकता है, जिसकी शिष्य को खबर ही न हो एवं गुरु भी छद्मस्थ होने से न जान सके हों, उन सब अपराधों को स्मृति में लाकर, यह पद बोलकर क्षमापना माँगनी है ।
दूसरे तरीके से ऐसा अर्थ भी हो सकता है कि शिष्य अल्प बुद्धिवालाअगीतार्थ होता है । इसलिए उसे अपनी अनाभोगादि से हुई भूलों का ख्याल नहीं होता । परन्तु गुरु भगवंत ज्ञानी - गीतार्थ होते हैं । इसलिए शिष्य से हुई भूलें उनके ख्याल में रहती हैं । उन भूलों को उनके द्वारा जानकर प्रायश्चित्त लेने के लिए शिष्य ये शब्द बोलता है ।
खुद को जिन अपराधों की जानकारी न हो, वैसे अपराधों की माफी मांगते हुए शिष्य सोचता है कि,
“भगवंत मैं जड हूँ - अल्पमति हूँ, इसलिए अपराध किया हो तो भी मुझे ख्याल में नहीं आता कि मैंने कुछ गलत किया है। पर आप ज्ञानी हैं, आप मेरे अपराध को जानते भी हैं । मेरे अपराध से आप को तो कोई फर्क नहीं पडता पर अगर मैं अपनी इन भूलों को सुधारूंगा नहीं तो ये भूलें अनर्थ की एक शृंखला बन जाएगी । इसलिए ओ गुरुदेव ! आप से बिनती करता हूँ, आप मेरे मुख़ की ओर मत देखिएगा, मेरे हृदय के भावों को देखकर, मेरी आत्मा की शुद्धि के लिए मेरे दोषों को आप जरूर बताइएगा । उन दोषों से मैं मुक्त हो पाउँ, ऐसी हितशिक्षा देते रहिएगा और उदारदिल आप मुझे माफ कीजिएगा एवं पूर्ववत् मेरा अनुशासन करते रहिएगा । आपके अनुशासन से ही मेरा कल्याण होगा ।”