Book Title: Sutra Samvedana Part 01
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 320
________________ बारामय गायत औषधि के ज्ञानमात्र से रोग का नाश नहीं होता / किन्तु औषधि का सेवन भी आवश्यक होता है / वैसे ही ज्ञानमात्र से परिणति नहीं बदलती किन्तु गणधर भगवंतोने बनाए हुए सूत्र के माध्यम से ज्ञानानुसार होनेवाली क्रिया ही मोक्ष के अनकल परिणति बनाएँ रखने का सचोट उपाय बन जाता है / वे सूत्र शब्दो में होते है और शब्द अक्षरो के बने होते है / अक्षरो में अनंत शक्ति समाई हुई है पर हमें उसे जगाना पड़ता है / और उसे जगाने के लिए हमें सूत्र में प्राणों का. सिंचन करना पड़ता है / यह प्राण फूंकने की क्रिया याने सूत्र का संवेदन करना पड़ता है तब सत्र सजीवन बन जाता है / फिर उसमें से अनर्गल शक्ति निकलती है जो हमारे में मौजुद - अनंत कर्मो का क्षय करने के लिए एक यहा के समान बनी रहती है। ____ अनंत गम पर्याय से युक्त इन सूत्रों के अर्थ का संकलन करना याने एक फलदानी में फलों को सजा के बगीचे का परिचय देने जैसी बात है / इसलिए ही सूत्र के सारे अर्थों को समझाने का भगीरथ कार्य तो पूर्व के महाबुद्धिमान अनुभवी महाशय ही कर सकते है / तो भी स्वपरिणिति का निर्मल बनाने के आशन से शुरु किए इस लिखान में आज के सामान्य बौद्ध जीव क्रिया करते करते याद कर सके उतना अर्थ संकलित है। सूत्रार्थ विषयक लिखे हुए इस पुस्तक को काहनी के किताब की तरह नहीं पढ़ना है, या उसे पढ़ाई का माध्यम भी नहीं बनाना है परंतु परिणति का पलटने के प्रयास के कठिन मार्ग का एक दीया है। Sanmarg - 079-25352072

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