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लोगस्स सूत्र
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उपस्थित करने के लिए उनमें सिद्धावस्था का आरोप करके उन्हीं को सिद्ध की तरह संबोधन करके कहा है कि, हे सिद्ध भगवंत । मुझे सिद्धि प्रदान करें अथवा सिद्ध भगवंतों से ही सिद्धि की याचना की गई है ।
इस गाथा का उच्चारण करते समय जो शीघ्र ही सिद्धगति को पानेवाले हैं, ऐसे अरिहंत परमात्मा को या सर्व सिद्ध भगवंतों को स्मरण में लाकर, हाथ जोड़कर, मस्तक झुकाकर प्रार्थना करनी चाहिए कि,
'हे सिद्ध भगवंत ! आप तो सर्व कर्म का नाश करके मोक्ष में पहुँच गये हैं । आप तो आत्मा के महान आनंद का अनुभव कर रहे हैं । सर्वश्रेष्ठ सुख के आप स्वामी हैं । मैं भी इस आनंद की अनुभूति कर पाऊँ ऐसा सामर्थ्य मुझे दे जिससे मेरा जीवन भी मोक्ष के अनुकूल बने '
यहाँ भी जो सिद्धि की याचना की गई है वह याचना करने से भगवान दे देंगे, ऐसा नहीं है, फिर भी इस प्रकार की याचना मोक्ष के प्रति अपने लगाव को पुष्ट करता है । इस प्रकार पुनः पुनः याचना करने से शुभभाव पैदा होता है । शुभभाव कर्म का नाश करवाकर मोक्षप्राप्ति का विशेष सत्त्व उल्लसित करता है, इसीलिए ऐसे गुणवान व्यक्ति से की गई याचना योग्य है, यह कोई निदान स्वरूप भी नहीं है और निरर्थक भी नहीं है क्योंकि, इसमें कोई सांसारिक सुख की आकांक्षा नहीं है और वीतराग से की हुई यह याचना अवश्य शुभभाव द्वारा उत्तरोत्तर इष्ट वस्तु की प्राप्ति करवाती है, इसलिए सार्थक ही है ।