Book Title: Sutra Samvedana Part 01
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 312
________________ मुहपत्ति पडिलेहन की विधि २७९ इसके अलावा, तीन लेश्याओं का परिणाम भी मनोगुप्ति आदि में बाधक है । इसलिए अब कहते हैं कि, ३२-३३-३४. कृष्ण लेण्या, नील लेण्या, कापोत लेश्या परिहर्स: कषाय अंतर्गत अध्यवसाय लेश्या है। शास्त्र में इस लेश्या के छः प्रकार बताये हैं । उनमें प्रथम तीन लेश्या अशुभ है । जिनमें अन्य के सुख दुःख का विचार भी नहीं होता, वैसा अत्यंत अशुभ परिणाम कृष्ण लेश्या में होता है । नील एवं कापोत लेश्या उससे थोड़ी अल्प मलीनता वाली है । इसलिए, इस बोल द्वारा आत्मा में रही हुई इन तीन मलिन लेश्याओं को त्याग करने का संकल्प करना है । तीन प्रकार के गारव भी आत्महित में बाधक हैं, इसलिए अब कहते हैं कि... ३५-३६-३७. रस गारव, ऋद्धि गारव, शाता गारव परिहरु : गारव याने गृद्धि अथवा गौरवता का परिणाम । खाने - पीने के स्वादिष्ट पदार्थों में आसक्ति करना या अभिमान करना रसगारव है । अपने पुण्यकर्म के उदय से प्रचुर ऋद्धि समृद्धि मिली हो, तो उसमें आसक्ति या अभिमान ऋद्धिगारव है एवं निरोगी शरीर या शरीर को शाता मिले वैसे साधनों में आसक्ति या अभिमान करना शातागारव है । ये तीनों गारव आत्मा के लिए अहितकर हैं । इन गारवों का आंशिक परिणाम भी आत्मा में न रह जाए, इसलिए इस बोल के द्वारा उनके त्याग की भावना व्यक्त की गई है । __गारव की तरह तीन प्रकार के शल्य भी आत्महित में बाधक है, इसलिए उनके त्याग के लिए कहते हैं कि३४-३९-४०. माया शल्य, नियाणशल्य, मिथ्यात्व शल्य परिहरु : माया याने कपट, निदान याने धर्म के बदले में इस लोक या परलोक के सुख की आकांक्षा एवं मिथ्यात्व याने बुद्धि का भ्रम । ये तीन शल्य पैर के

Loading...

Page Navigation
1 ... 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320