Book Title: Sutra Samvedana Part 01
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 299
________________ २६६ सूत्र संवेदना कहा है, ‘श्रेयांसि हि बहुविघ्नानि' समता को साधने का काम श्रेय रूप - है । उसमें अनेक बाह्य अभ्यंतर विघ्नों की शक्यता रहती है। सर्दी-गर्मी आदि स्वरूप अनेक प्रकार के बाह्य विघ्न हैं एवं सामायिक में आवश्यक साधनों के सिवाय कोई भी साधन-सामग्री या अन्य भावों के प्रति ममत्व आदि अंतरंग विघ्न हैं । अंतरंग विघ्न तो सदा साथ ही रहता है । इसलिए नवकार मंत्र गिनकर पंचपरमेष्ठि का स्मरण करते हुए विघ्ननाश का संकल्प करना है । ५. इसके बाद 'इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी सामायिक दंडक उच्चरावोजी' ऐसा कहकर गुरु या बुजुर्ग के मुख से करेमि भंते सूत्र सुनना एवं कोई न हों, तो स्वयं करेमि भंते सूत्र बोलना । एक नवकार गिनकर साधक ऊँचे स्वर में बोलता है 'इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी सामायिक दंडक उच्चरावोजी' - हे भगवंत ! आपकी इच्छा हो तो - मुझ पर कृपा करके मुझे सामायिक की प्रतिज्ञा स्वरूप - सामायिक दंडक (करेमि भंते सूत्र ) का उच्चरण करवाइएँ अर्थात् इस सूत्र द्वारा मुझे सामायिक की प्रतिज्ञा करवाएँ । यह शब्द सुनकर गुरु भगवंत भी स्पष्ट शब्दोच्चारणापूर्वक उच्च स्वर में 'करेमि भंते सूत्र' बोलते हैं । सामायिक लेनेवाला साधक इसके एक एक शब्द को अर्थ के विचार के साथ उपयोगपूर्वक सुनता है । शब्द सुनते ही उसे होता है, 'अहो ! दुनियाभर के पाप से अब मैं छूट गया, पूर्व के पापों का भी प्रतिक्रमण कर थोड़ा हलका हुआ एवं भविष्य में (४१ मिनिट में ) भी ऐसे पाप न हों इसके लिए सतर्क रहूँगा ।' यह तथ्य याद रखना जरूरी है, कि ऐसे भाव उसी को आते हैं, जिन्हें सूत्र का अर्थ आता हो एवं जो सूत्र - अर्थ में ही उपयोगवाला हो । बाकी मन को यहाँ वहाँ भटकने देकर उपयोग के बिना इस सूत्र को बोलनेवाले को या सुननेवाले को ऐसा कोई भाव नहीं आ सकता । ६. फिर एक मासमण देकर आदेश ले 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बेसणे संदिसाहुं ?' " इच्छं" कहकर और एक खमासमण देकर आदेश ले, 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बेसणे ठाउं ? “इच्छं" कहकर और

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