Book Title: Sutra Samvedana Part 01
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 285
________________ २५२ सूत्र संवेदना ६. लाभवांछा : सामायिक करने से मुझे पुत्र - पैसा या शत्रु पर विजय आदि लाभ होगा, ऐसी इच्छा से सामायिक करना 'लाभवांछा' दोष है । यद्यपि संसारी धन या पुत्रादि की इच्छावाले होते हैं, तो भी विवेकी श्रावक तो समझते ही हैं कि 'इच्छाएँ ही अनर्थ का मूल हैं' वे तो जहाँ एक भी इच्छा न हो, ऐसे मोक्षसुख पाने के लिए ही भगवान ने इस सामायिक की क्रिया बताई है । इसलिए सामायिक द्वारा अन्य सुख की इच्छा न रखते हुए विवेकी आत्मा मात्र मोक्ष की ही इच्छा रखते हैं । ७. भय : सामायिक नहीं करूँगा, तो धर्मी समाज में मैं अच्छा नहीं लगूंगा, मेरे बुजुर्गों को अच्छा नहीं लगेगा ऐसे कोई भय से सामायिक ले तो वह सामायिक में 'भय' दोष कहलाता है, ऐसे श्रावक सामायिक लेकर सूत्रार्थ परावर्तना आदि करते हों, तो भी भय का परिणाम अंतर में चालू ही रहता है । सामायिक में अपने धनादि के नाश का या आपत्ति का भय रहे, तो वह भी भय दोष कहलाता है । सामायिक में साधक के चित्त को सर्वत्र अप्रतिबद्ध करने का प्रयत्न करना है एवं जैसे जैसे चित्त परपदार्थ से अलिप्त (अनासक्त) बनता है, वैसे वैसे वह भय मुक्त बनता जाता है । ८. यशकीर्ति : सामायिक करने के कारण लोग मेरी प्रशंसा करेंगे, मुझे धर्मी कहेंगे, ऐसे व्यक्त या अव्यक्त आशयपूर्वक की गई सामायिक यशकीर्ति दोषवाली कहलाती है । इस दोष को निकालने के लिए सर्वत्र उदासीन वृत्ति रखनी चाहिए । किसी से भी प्रशंसा की इच्छा तो बिल्कुल नहीं रखनी चाहिए; परन्तु यदि कोई सामने से प्रशंसा के शब्द कहे तो भी लेश मात्र भी मन पर उसकी असर न हो, तो ही सामायिक शुद्ध हो सकती है। ९. निदान ; सामायिक के फल रूप इस लोक में भौतिक सुख या परलोक में मुझे देवादि भव और उनका वैभवादि प्राप्त हो, ऐसी आकांक्षा निदान नामक दोष है। इस दोष को दूर करने के लिए सामायिक करते समय सर्वत्र समभाव में रहने का खास यत्न करना चाहिए, जिससे ऐसे तुच्छ पदार्थों की इच्छा, मात्र की संभावना न रहे ।

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