Book Title: Sutra Samvedana Part 01
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 260
________________ करेमि भंते सूत्र २२७ देश से (आंशिक रूप से) सावध योगों का त्याग करते हैं।। तब मन-वचनकाया से वे एक भी सावध प्रवृत्ति नहीं करते, तो भी वे अपने-कुटुंब, संपत्ति आदि के प्रति ममत्वकृत संबंध नहीं छोड़ सकते - सामायिक के दौरान कुटुंब-परिवार-संपत्ति आदि का व्यक्तरूप विचार न होते हुए भी संस्कार रूप से तो उनके साथ नाता नहीं छूटता । इसीलिए वे मुनि की तरह 'तिविहं तिविहेणं' का पच्चक्खाण न लेकर 'दुविहं तिविहेणं' का पच्चक्खाण करते हैं । देश से सामायिक की प्रतिज्ञा करनेवाले पाँचवें गुणस्थान में रहे हुए श्रावक भी ऐसे उपयोगवाले होते हैं कि सामायिक के समय संसार के तमाम भावों के प्रति राग-द्वेष का परिणाम उत्पन्न न हो। ऐसा होने के बावजूद भी वे संपत्ति आदि के प्रति ममत्व का त्याग नहीं कर सकते, इसलिए उनकी सामायिक मुनि की अपेक्षा निम्न स्तर की होती है । 'करेमि भंते सामाइअं' इतना बोलते समय देव, गुरु एवं अपनी आत्मा को स्मृति पट पर बिराजित कर दो हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर साधक प्रतिज्ञा करते हुए ऐसा भाव व्यक्त करता है, 'हे भगवंत ! मैं सामायिक करता हूँ। अब मैं सर्वत्र समभाव में रहने का यत्न करूँगा । कभी अनादिकाल के कुसंस्कार मुझे परेशान करें, मेरे मन को विचलित करें तब आप मेरी रक्षा कीजिएगा । मेरी सहयता कीजिएगा और प्रतिज्ञा का विशुद्ध पालन करने के लिए मुझे समर्थ बनाइएगा ।' अब सामायिक की प्रतिज्ञा का पालन करने के लिए जिसका त्याग करना जरूरी है, उस पाप प्रवृत्ति का त्याग करने के लिए साधक कहता है कि, सावजं जोगं पञ्चक्खामि : मैं सावध योगों का (प्रवृत्तिओं का) पच्चक्खाण करता हूँ ।

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