Book Title: Sukti Triveni Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 8
________________ कवि श्री जी महाराज न सतत परिश्रम एवं विशाल अध्ययन के आधार पर 'सूक्ति त्रिवेणी' का जो सुन्दर तथा महत्त्वपूर्ण संकलन प्रस्तुत किया है, वह वर्तमान समय का अद्वितीय ग्रन्थ कहा जा सकता है। इससे लेखक, प्रवक्ता, संशोधक, जिज्ञासु, स्वाध्याय प्रेमी आदि सभी को लाभ प्राप्त होगा। इस ग्रन्थ रत्न का हार्दिक अभिनन्दन ! ___ -आचार्यश्री आनन्दऋषिजी महाराज उपाध्याय कवि अमर मुनि के बहिरंग से ही नहीं, अन्तरंग से भी म परिचित हूँ। उनकी दृष्टि उदार है और वे समन्वय के समर्थक हैं। 'सूक्ति त्रिवेणी' उनके उदार और समन्वयात्मक दृष्टिकोण का मूर्तरूप है। इसमें भारतीय धर्मदर्शन की त्रिवेणी का तटस्थ प्रवाह है। यह देखकर मुझे प्रसन्नता हुई कि इसमें हर युग की चिंतन धारा का अविरल समावेश है। यह सत्प्रयत्न भूरि-भूरि अनुमोदनीय है। तेरापंथी भवन, -आचार्य तुलसी मद्रास सत्य असीम है। जो असीम होता है, वह किसी सीमा में आबद्ध नहीं हाता । सत्य न तो भाषा की सीमा में आबद्ध है और न सम्प्रदाय की सीमा में। वह देश, काल की सीमा में भी आबद्ध नहीं है। इस अनाबद्धता को अभिव्यक्ति देना अनुरान्धित्सु का काम है। उपाध्याय कवि अमर मुनि सत्य के अनुसन्धित्सु हैं। उन्होंन भाषा आर सम्प्रदाय की सीमा से परे भी सत्य को देखा है। उनकी दिदृक्षा इस 'सूक्ति त्रिवेणी' में प्रतिबिम्नि कवि श्री ने सूक्ष्म के प्रति समदृष्टि का वरण कर अनाग्रहभाव से भारत के तीनों प्रमुख धर्म-दर्शनों (जैन, बौद्ध और वैदिक) के हृदय का एकीकरण किया है । कवि श्री जैसे मेधावी लेखक हैं, वैसे ही मेधावी चयनकार भी हैं । सत्य-जिज्ञासा की सम्मूर्ति, समन्वय और भारतीय आत्मा का संबोध इन तीनों दृष्टियों से प्रस्तुत ग्रंथ पठनीय बना है। आचार्य श्री ने भी उक्त दृष्टियों से इसे बहुत पसन्द किया है। मैं आशा करता हूँ कि कवि श्री की प्रबुद्ध लेखनी से और भी अनेक विन्यास प्रस्तुत होते रहेंगे। तेरापंथी भवन -मुनि नथमल मद्रास (युवाचार्य महाप्रज्ञ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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