Book Title: Sukti Triveni Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 6
________________ सूक्ति त्रिवेणी | विद्वानों का अभिमत राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली-४ दिनांक- २६ अगस्त, १९६८ इन्सान फितरतन आजाद मनिश होता है। किसी किस्म की पाबन्दी या रोक-टोक उसकी इस आजादी में रुकावट समझी जाती है। लेकिन समाजहित और अनुशासन के लिए यह जरूरी है कि कुछ ऐसे नियम निर्धारित हों, जो समाज को जंगल के कानून का शिकार न होने दें। यही वह नियम हैं, जो दुनियाँ के भिन्न-भिन्न धर्मों की आधार शिला है, ख्वाह वह हिन्दुओं का धर्म हो या किसी और का । हकीकत तो यह है कि दुनियां का हर मजहब एखलाकी कदरों का एक मखजन है। उपाध्याय अमर मुनि की यह रचना इन्हीं नियमों और उपदेशों का संग्रह है, जिसमें जैन, बौद्ध और वैदिक धर्म के चुने हुए उपदेशों का संग्रह एक पुस्तक के रूप में जन-साधारण की भलाई के लिए प्रकाशित किया गया है । मुझे विश्वास है कि अगर लोग इस किताब को पढेंगे और इसमें दिये हुए इन उसूलों पर अमल करेंगे तो वह केवल अपने मजहब के लोगों के जीवन ही को नहीं, बल्कि अपने आस-पास के लोगों के जीवन को भी सुखमय और शान्तिपूर्ण बना सकेंगे। मैं आशा करता हूँ कि मुनिजी की रचना का लोग ध्यान से अध्ययन करेंगे और इच्छित लाभ उठा सकेंगे। -जाकिर हुसैन (राष्ट्रपति-भारत गणराज्य) 'सूक्ति त्रिवेणी' श्री उपाध्याय अमर मुनि की कृति है, अमर मुनिजी अपनी विद्वत्ता के लिये प्रसिद्ध हैं। पुस्तक में जैन, बौद्ध और वैदिक साहित्य के सर्व मान्य ग्रन्थों से सुन्दर संग्रह किया गया है। भारतवर्ष का यह काल निर्माण का समय है, परन्तु यह खेद की बात है कि यह निर्माण एकांगी हो रहा है। हमारी दृष्टि केवल भौतिकता की ओर है। हमारे निर्माण में जब तक आध्यात्मिकता नहीं आयेगी, तब तक यह निर्माण सांगोपांग और पूर्ण नहीं हो सकता। यह ग्रंथ इस दिशा में अच्छी प्रेरणा देता है। -(सेठ) गोविन्ददास संसद सदस्य (अध्यक्ष : हिन्दी साहित्य सम्मेलन) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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