Book Title: Subhashit Ratna Sandoha
Author(s): Amitgati Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 4
________________ प्रधान सम्पादकीय 'अमितगति द्वारा विरचित माने जाने वाली रचनाओं से अधिकांश मुद्रित हो चुकी हैं और उनमें से कुछका आलोचनात्मक अध्ययन किया गया है। सुभाषित रत्न सन्दोहका काव्यमाला क्र० ८२ (बम्बई १९०३) में प्रकाशन हुआ था। और उसकी प्रस्तावना में भवदत्त शास्त्रीका ग्रन्थकार एवं उनके रचना कालके सम्बन्धमें एक लेख भी था । इसका अध्ययन करके जे० हर्टेल नामक जर्मन विद्वानने अपने एक विद्वत्तापूर्ण लेखमें यह बात प्रकट की कि इस ग्रन्थका (जो संवत् १०५० में रचा गया था ) संवत् १२१६ में हेमचन्द्र द्वारा रचित योगशास्त्र पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। इसके पश्चात् जर्मन विद्वान स्मिट् और हर्टेल द्वारा आलोचनात्मक रीतिसे सम्पादित एवं जर्मन भाषामें अनुवाद सहित इस ग्रन्थका प्रकाशन भी कराया गया था । इस संस्करणकी प्रस्तावना में ग्रन्थकार अमितगति, ग्रन्थ के शब्द चयन एवं व्याकरण सम्बन्धी विशेषता तथा उपयोग में लाये गये प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोंका विवरण पाया जाता है ( लीपजिग १९०५ - १९०७) । ल्यूसनने इस संस्करणके सम्बन्ध में कुछ महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किये है। इस समस्त सामग्री के आधार परसे इस ग्रन्थका संस्करण जीवराज जैन ग्रन्थमाला शोलापुरसे प्रकाशनार्थं तैयार हो रहा है।' भारतीय ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी जैनग्रन्थमाला संस्कृत ग्रन्थांक ३३ रूपसे प्रकाशित (सन् १९६८ ) योगसार प्राभृत के प्रधान सम्पादकीयमें डॉ० ए. एन. उपाध्येने उक्त घोषणा की थी। उसीके अनुसार डॉ० उपाध्येके स्वर्गवास के १|| वर्ष पश्चात् यह ग्रन्थ प्रकाशित हो सका है। वह यदि जीवित रहते तो उक्त जर्मन संस्करणके आधारपर वह इसकी प्रस्तावना में सु० २० सं० की विशेषताओं पर विशेष प्रकाश डालते और इस तरह हिन्दीभाषी भी उससे लाभान्वित होते । किन्तु खेद है कि उनके स्वर्गंत हो जानेसे उनके अनेक संकल्पोंके साथ यह संकल्प भी चरितार्थं न हो सका । प्रस्तुत संस्करणको पाण्डुलिपि उक्त जर्मन पुस्तकके आधारपर कोल्हापुरके श्री वि० गो० देसाईने की है। उससे मूल श्लोक लिये है । 'स' इस अक्षरसे जो पाठ भेद दिये गये हैं वे भी उसी प्रतिसे लिये हैं । 'स' का मतलब है SCHIMIDT = स्मिट्, वे जर्मन संस्करणके सम्पादक हैं। स्मिटने छ प्रतियोंसे पाठभेद लिये हैं १. B बर्लिन प्रति । २. L इण्डिया आफिस । ३. S. Strab burger. ४-५ P. भण्डारकर रि० इ० पूना । ६. K. काव्यमाला में मुद्रित । उक्त सूचना हमें श्रीदेसाईसे प्राप्त हो सकी है। हमें वह प्रति देखने को नहीं मिल सकी। श्रीदेसाईने ही संस्कृत पद्योंका अन्वय किया है और भाषान्तर पं० बालचन्दजी शास्त्रीने किया है। में उक्त दोनों सहयोगियोंका आभारी हूँ । इसका मुद्रणकार्य निर्णयसागर प्रेस बम्बई में प्रारम्भ हुआ था। डा० उपाध्येके स्वर्गवासके समय तक केवल प्रारम्भके ६४ पृष्ठ छपे थे और काम रुका हुआ था । ग्रन्थमालाके सम्पादनका भार वहुत करनेपर हमने इसके मुद्रणकी व्यवस्था बनारस में की। और श्रीबाबूलालजी फागुल्लके सहयोगसे उन्हींके मुद्रणालयमें इसका मुद्रण प्रारम्भ हुआ और उन्होंने तीन मासमें ही पूरा ग्रन्थ छाप दिया। इसके लिये हम उनके विशेष आभारी हैं। श्री स्याद्वाद महाविद्यालय भदैनी, वाराणसी वी० नि० सं० २५०३ कैलाशचन्द्र शास्त्री

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