Book Title: Sthanang Sutra Dipika Vrutti Author(s): Vimalharsh Gani, Mitranandvijay Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund View full book textPage 7
________________ प्रस्तावना। श्रीस्थानात सूत्रदीपिका बृत्तिः । ||३|| 2000000000000000000000000000००००००००००००००००००००....." पं. नगर्षिगणिनी अन्य कृतिओ : जैनसत्यप्रकाश क्रमांक ११४ मां नीचे मुजब उल्लेख छे के पं० नगर्षि गणिए सं. १६४९ मां रामसीतारास, अल्पबहुत्वविचारगर्भित भ० महावीरस्वामीनु स्तवन गा० ४९. दंडक अवचूर्णि स. १६५१ ना श्रावण सुदि ३ ना रोज जालोरमां वरकाणा पार्श्वनाथ स्तवन सं. १६५१ भा. व. ३ ना रोज जालुर पंचचैत्यपरिपाटीस्तवन अने सं. १६५७ ना वैशाख सुदि ७ ना रोज स्थानांगदीपिका ग्रंथान १८००० ( आ आंकडो खोटो लागे छे कारण के ग्रंथान १३ थी १४ हजार छे.) तेमज स. १६१७मां गुजरातीमां कडीबद्ध 'कल्पान्तर्वाच्य' वगेरे ग्रंथो रच्या हता. तेमनाथी नगवर्धन शाखा नीकळी छे. दीपिका टीकानी हस्तप्रत : आ टोकाग्रथना संशोधन संपादनमां लींबडी-जैनसंघ (आणंदजी कल्याणजीनी पेढी) हस्तकना हस्तलिखित ज्ञानभंडारनी एक ज प्रतनो उपयोग थयो छे. तपास करतां बीजी कोइ हस्तप्रत प्राप्त थइ न हती. आ प्रस्तावना लखाय छे त्यारे सांभळवा मल्यु छे के अमदावादना डहेलाना उपाश्रयना ज्ञानभंडारमा तथा देवसाना पाडाना संघहस्तकना शानभंडारमा ठाणांगदीपिकानी हस्तप्रतो छे. लींबडीना शानभंडारनी हस्तप्रत आपवा बदल त्यांना वहीवटदारोनी उदारता प्रशंसनीय छे. आ हस्तप्रतमां आजथी ५४ वर्ष पूर्व आगमोदयसमिति ॥३॥ Jain Education interna For Private & Personal use only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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