Book Title: Sthanang Sutra Dipika Vrutti Author(s): Vimalharsh Gani, Mitranandvijay Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund View full book textPage 5
________________ प्रस्तावना। धीस्थानाङ्ग सूत्रदीपिका वृत्तिः । ॥१॥ १०००००००००००००००००0000000000000000000000000000000000 जयन्तु वीतरागाः -प्रस्तावना :श्री देवचंद लालभाद जैन पुस्तकोद्धार फंड संस्थाना कार्यवाहक सुश्रावक केशरीचंद हीराचंद सं. २०२३ मां नडीयाद मुकामे मारी पासे आव्या अने 'श्रीठाणांग सूत्र' उपरनी 'दीपिका' टीकार्नु इस्तप्रतना आधारे संशोधन संपादन करी आपवा विनंति करी. परमपूज्य भवोदधितारक सिद्धांतमहोदधि सयमत्यागतपोमूर्ति सुविशालगच्छाधिपति शासनदिवाकर कर्मशास्त्ररहस्यवेदी परमगुरुदेव आचार्य देव श्रीमद्विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराज साहेबनी अनुमति मेळवी में आ शुभ कार्यनो स्वीकार को. सं. २०२४ नी सालमां पू. परमशासनप्रभावक व्याख्यानवाचस्पति परमकृपानिधि गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमदविजय रामचद्रसूरीश्वरजी महाराजनी पुण्यनिधामा चोमासु रहेवानु थयु. त्यां श्रीठाणांगसूत्र उपरनी दीपिका टीकाना संशोधननु कार्य शरु कर्यु: श्रीठाणांग (स्थानांग सूत्र): हालमा विद्यमान ४५ आगमोमां ११ अंगसूत्रो छे तेमां त्रीजु ठाणांग सूत्र छे तेना वर्तमान प्रथम भागमां सूत्रसंख्या ३८८ छे. तेना उपर शासनशिरोमणि पू. आ. अभयदेवसूरीश्वरजी म. रचित विद्वद्भोग्य विस्तृत टीका हाल छे. ते पूर्व विद्वशिरोमणि शीलाकांचार्य भगवाननी रचेली टीका हती. हाल ते उपलब्ध नधी साइकोलोजोथी भरेलो अने घणी तात्त्विक Jain Educaban For Privals & Personal use only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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