Book Title: Sthanang Sutra Dipika Vrutti Author(s): Vimalharsh Gani, Mitranandvijay Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund View full book textPage 6
________________ मोस्थानाङ्ग सूत्र दीपिका वृत्तिः । ॥२॥ Jain Education Interna वावतोनो भंडार आ ग्रंथ छे. एकथी दस सुधीनी संख्यामां रहेली वस्तुओनो निर्देश करता आ ग्रंथी शैलीने मळतो बौद्धोमां 'अंगुर निकाय' नामनो ग्रंथ छे. दीपिका टीका : आ टीकामां पना रचयिता महर्षि नगर्षिगणिए मोटी टीकानो आधार लीधो छे. वाद-चर्चानां स्थळो अने केटलेक ठेकाणे टीकानो विस्तार हुंकावीने संस्कृतना प्राथमिक अभ्यासीओ पण वांची शके प रीते आ दीपिका टीका तेओप रची-संकलित करी छे. टीकाना रचियता : आ टीकाना रचयिता पं. नगपिगणि अकबर बादशाह प्रतिबोधक जगद्गुरु आ. श्री हीरविजयसूरीश्वरजी म० ना शिष्य पं उदयवर्धन गणिना शिष्य पं. कुशलवर्धन गणिना शिष्य छे. टीकामां आपणने टीकाकारे पोते करेलो उल्लेख जोवा मळे छे के " श्रीमद् तपागच्छाधिराज सूरीश्वर श्री विजयदेवसेनसूरिना राज्यमां श्रीमद् तपागच्छने शोभावनार हार समा सूरीश्वर श्रीविजयदेवसूरि यौवराज्यमां सकलवाचक शिरोमणि महोपाध्याय श्री विमलहर्ष गणिए संशोधित करेली, पंडित कुशलवर्ध नगणिशिष्य पंडित नगर्षि गणिए स्ववाचन अने परोपकार माटे उद्धार रूपे रचेली स्थानांगदीपिकामां प्रथम अध्ययन समाप्त थयुं." For Private & Personal Use Only प्रस्तावन । ॥२॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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