Book Title: Sruta Sarita
Author(s): Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 249
________________ ŚRUTA-SARITĀ इन सूत्रों में से कुछ तो ऐसे हैं, जिनके कर्त्ता का नाम भी उपलब्ध होता है जैसेदशवैकालिक शय्यंभवकृत है, प्रज्ञापना श्यामाचार्य कृत है । दशाश्रुत, बृहत्कल्प और व्यवहार के कर्त्ता भद्रबाहु हैं । 240 इन सभी सूत्रों का सम्बन्ध दर्शन से नहीं है । कुछ तो ऐसे हैं, जो जैन आचार के साथ सम्बन्ध रखते हैं जैसे- आचाराङ्ग, दशवैकालिक आदि । कुछ उपदेशात्मक है जैसे उत्तराध्ययन, प्रकीर्णक आदि । कुछ तत्कालीन भूगोल और खगोल आदि सम्बन्धी मान्यताओं का वर्णन करते हैं, जैसे - जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति आदि । छेदसूत्रों का प्रधान विषय जैन साधुओं के आचार सम्बन्धी औत्सर्गिक और आपवादिक नियमों का वर्णन व प्रायश्चितों का विधान करना है । कुछ ग्रन्थ ऐसे हैं, जिनमें जिनमार्ग के अनुयायिओं का चरित्र दिया गया है जैसे- उपासकदशा, अनुत्तरौपपातिकदशा आदि, कुछ में कल्पित कथाएँ देकर उपदेश दिया गया है, जैसे ज्ञातृधर्मकथा आदि । विपाक में शुभ और अशुभ कर्म का विपाक कथाओं द्वारा बताया गया है । भगवतीसूत्र में भगवान् महावीर के साथ हुए संवादों का संग्रह है । बौद्ध सुत्तपिटक की तरह नाना विषय के प्रश्नोत्तर भगवती में संगृहीत हैं । दर्शन के साथ सम्बन्ध रखने वालों में खासकर - सूत्रकृत, प्रज्ञापना, राजप्रश्नीय, भगवती, नन्दी, स्थानांग, समवाय और अनुयोग मुख्य हैं । सूत्रकृत में तत्कालीन मन्तव्यों का निराकरण करके स्वमत की प्ररूपणा की गई है । भूतवादियों का निराकरण करके आत्मा का पृथग्-अस्तित्व बताया है । ब्रह्मवाद के स्थान में नानात्मवाद स्थिर किया है । जीव और शरीर को पृथक् बताया है । कर्म और उसके फल की सत्ता स्थिर की है । जगदुत्पत्ति के विषय में नानावादों का निराकरण करके विश्व को किसी ईश्वर या ऐसी ही किसी व्यक्ति ने नहीं बनाया, वह तो अनादि अनन्त हैं, इस बात की स्थापना की गई है । तत्कालीन क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद और अज्ञानवाद का निराकरण करके सुसंस्कृत क्रियावाद की स्थापना की गई है । प्रज्ञापना में जीव के विविध भावों को लेकर विस्तार से विचार किया गया है । राजप्रश्नीय में पार्श्वनाथ की परम्परा में हुए केशी श्रमण ने श्रावस्ती के राजा पएसी के प्रश्नों के उत्तर में नास्तिकवाद का निराकरण करके आत्मा और तत्सम्बन्धी अनेक बातों को दृष्टांत और युक्तिपूर्वक समझाया है । भगवतीसूत्र के अनेक प्रश्नोत्तरों में नय, प्रमाण, सप्तभङ्गी, अनेकान्तवाद आदि अनेक दार्शनिक विचार बिखरे पड़े हैं । नन्दी जैनदृष्टि से ज्ञान के स्वरूप और भेदों का विश्लेषण करने वाली एक सुन्दर कृति 1 स्थानांग और समवायांग की रचना बौद्धों के अंगुत्तर निकाय के ढ़ंग की है। इन दोनों में भी आत्मा, पुद्गल, ज्ञान, नय, प्रमाण आदि विषयों की चर्चा आई है । भगवान् महावीर के शासन में हुए निह्नवों का वर्णन स्थानांग में है। ऐसे सात व्यक्ति बताए गए हैं जिन्होंने कालक्रम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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