Book Title: Sruta Sarita
Author(s): Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

View full book text
Previous | Next

Page 280
________________ आचार्य जिनभद्र कृत बोटिक मत का विवरण बोटिक मत का सर्वप्रथम विवरण आवश्यक-निर्युक्ति के मूलभाष्य में (विशेषा.' गा० ३०३२ - ३०३५) आया है । उसी की व्याख्या आचार्य जिनभद्र ने विशेषावश्यक में गा० ३०३६३०९७ में की है अर्थात् विशेषावश्यक में बोटिक मत की चर्चा समग्र रूप से ६२ गाथाओं में की है। मूलभाष्य की ४ गाथा और चर्चा के अन्त में आनेवाली कथासंबद्ध गा० ३०८९, ३०९२ – दो गाथाएँ निकाल दी जाएँ तो बोटिक मत की चर्चा के लिये विशेषावश्यक में ५६ गाथाएँ रह जाती हैं । आचार्य हरिभद्र ने इसी बोटिक मत की चर्चा अपने धर्मसंग्रहणी ग्रन्थ में गा० १०१६११३४ में की है । अर्थात् आचार्य जिनभद्र ने इस चर्चा को ५६ गाथाओं में समाप्त किया था वहाँ आचार्य हरिभद्र ने ११९ गाथाओं में किया है। स्पष्ट है कि चर्चा का विस्तार दुगुने से भी अधिक है । आचार्य जिनभद्र ने बोटिक मत की उत्पत्ति की कथा दी है (विशेषा. ३०३२-३०३५), किन्तु आचार्य हरिभद्र ने उत्पत्ति के विषय में कुछ भी नहीं कहा । वास्तविक बात यह है कि आवश्यक - नियुक्ति की व्याख्या विशेषावश्यक में है और आवश्यक - नियुक्ति में निह्नवों का उल्लेख है । अतएव प्रासंगिक रूप से उक्त सात निह्नवों के अलावा आठवें बोटिक की चर्चा करने का अवसर आचार्य जिनभद्र को मिला है । आचार्य हरिभद्र तो पाञ्च महाव्रतों का विवरण धर्मसंग्रहणी में देते हैं और प्रसंग में अपरिग्रह व्रत के विवरण में वस्त्रादि संयम के उपकरणों को (गा. १०३९) परिग्रह माना जाए या नहीं— इस चर्चा को 'अन्य' = बोटिक के द्वारा उठाया गया है । अतएव बोटिक की कथा या उसकी उत्पत्ति के प्रसङ्ग को देने की आवश्यकता आचार्य हरिभद्र ने महसूस नहीं की है । मैं प्रथम यहाँ आचार्य जिनभद्र के मन्तव्य को उपस्थित कर रहा हूँ। फिर कहीं अवसर मिलने पर आचार्य हरिभद्र के मन्तव्य की चर्चा करूँगा । यहाँ आचार्य जिनभद्र के टीकाकारों के विवरण का भी यथायोग्य आश्रय लिया है । आचार्य जिनभद्र के अनुसार भगवान महावीर के निर्वाण के बाद ६०९ वर्ष बीतने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310