________________
निर्ग्रन्थ का चातुर्याम-'सर्ववारिवारितो' का अर्थ
૨૬૫
माइयं
यहाँ यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि भगवान् महावीर ने दीक्षा लेते समय जो प्रतिज्ञा की थी उससे भी स्पष्ट होता है कि उन्होंने सर्व पापों का वारण किया था-"तओ णं समणे जाव लोयं करित्ता सिद्धाणों नमुक्कारं करेइ, सव्वं मे अकरणिज्जं पावकम्मं ति कट्ट चरितं पडिवज्जई" आचारांग, द्वितीयश्रु. सू. १७९, पृ. ४२४
यह सब देखते हुए 'वारि' शब्द का अर्थ 'वारणयोग्य' = पाप का ही होना उचित है न कि वारि = पानी ।
टिप्पण :
Canon Bouddhque, Pali; Suttapitaka Dighanikāya, tome I, p. 51. ★ यहाँ जो पाठ दिया है वह प्राकृत टेकस्ट सोसायटी द्वारा सूत्रकृतांगचूणि जो छप रहा है उसीसे लिया गया है
अन्य पाठान्तर इस प्रकार हैं-'पभू वारिय सव्ववारं' आगमोदयआवृत्ति और डा. वैद्यकी आवृत्ति ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org