Book Title: Sramana 2012 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 12
________________ समवायांगसूत्र में पाठभेदों की प्रमुख प्रवृत्तियाँ : 5 पयसयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ते2 4. पादपूरक निपातों का प्रयोगकुछ पाण्डुलिपियों में कई स्थलों पर 'ण' और 'तु निपातों का प्रयोग और कुछ में उनका अभाव पाया जाना भी पाठ-भेद का कारण बना है, जैसे इमीसे रयणप्पभाए- इमीसे णं रयणप्पभाए23 रसगारवे- रसगारवे ण तेसिं देवाणं- तेसिं देवाणं ण इमीसे- इमीसे ण महग्गहे-महग्गहे ण अट्ठादण्डे- अट्ठादण्डे उ8 वेयगसम्मत्तबंधोवयरस्स णं - वेयगसम्मत्तबंधोवयरस्स सव्वेसिं- स्व्वोसि पि ण 5. अर्द्धमागधी के स्थान पर महाराष्ट्री का प्रयोग कुछ पाण्डुलिपियों में कई स्थलों पर अकारान्त पुल्लिंग शब्दों का एकवचन में अर्द्धमागधी और महाराष्ट्री में प्रयोग भी पाठ-भेद के कारण बनते हैं। श्वेताम्बर आगमों की भाषा अर्द्धमागधी है। अर्द्धमागधी में अकारान्त पुल्लिंग का एकवचन में रूप एकारान्त होता है जबकि महाराष्ट्री में वही रूप ओकारान्त होता है । उदाहरणार्थ- अर्द्धमागधी आयारे- महाराष्ट्री आयारो इसी प्रकार सूयगडे- सूयगडो, सूतगडो32 6. लेहिया (हस्तलिपिकार) द्वारा लिखते समय शब्दों का क्रम- परिवर्तनहस्तलिपिकार द्वारा पाण्डुलिपि की अनुकृति करते समय शब्दों के क्रम में परिवर्तन भी पाण्डुलिपियों में पाठभेद का कारण बनता हैदेवाणं अत्थेगतियाणं -अत्थेगतियाणं देवाण देवाणं जहण्णेणं -जहण्णेणं देवाण रुद्दे सुक्के- सुक्के रुद्दे कप्पे सभाए सुहम्माए- कप्पे सुहम्माए सभाए" भट्टित्तं सामित्तं-सामित्तंभट्टित्त” कुमारमज्झावसित्ता-कुमारवासमज्झा विचित्तचित्तकूडा-चित्तविचित्तकूडा" णं मंडले-मंडले णं0 वाराहे पुण आणंदे- वाराहे याणंदे पुण" जाला तारा मेरा- तारा जाला मेस'2

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