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पार्श्वनाथ विद्यापीठ समाचार
1. देवर्धि परिषद्, नागपुर के द्वारा आयोजित परिसंवाद सम्पन्न संस्कृत विद्या के विद्वान् मनीषी प. पू. मुनिश्री प्रशमरति विजयजी म. सा. के सान्निध्य में दिनांक 27 मई 2012 रविवार के दिन एक परिसंवाद का आयोजन हुआ। परिसंवाद का विषय था- 'भारतीय साहित्य की परम्परा में आधुनिक संस्कृत जैन ग्रन्थकारों का अवदान'। पू. मुनिश्री ने इसी विषय पर एक पुस्तक लिखी है : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रन्थकार, प्रकाशक, चौखम्भा प्रकाशन, बनारस। इस परिसंवाद में इस पुस्तक का विमोचन भी किया गया। पू. मुनिश्री ने अपने वक्तव्य में परिसंवाद की भूमिका समझाते हुए कहा कि "पिछले सौ-डेढ़ सौ साल में हिन्दी, गुजराती तथा अंग्रेजी भाषाओं में लिखे गए जैन ग्रन्थों की संख्या इतनी विशाल है. कि गिनती करना असम्भव सा प्रतीत होता है। इनके सामने इन्हीं वर्षों में लिखे गए संस्कृत-प्राकृत ग्रन्थों की संख्या सात सौ से अधिक है। तथापि संस्कृत-प्राकृत ग्रन्थों का महत्त्व ही सविशेष है क्योंकि आत्मचिन्तन की भारतीय परम्परा और वीतरागभाव की उपासना करने की जैन परम्परा का आदर्श संस्कृत-प्राकृत ग्रंथों ने ही जीवंत रखा है। इस परिसंवाद में प्रो. रमेश चन्द्र पण्डा (पूर्व संकायाध्यक्ष, संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी), प्रो. प्रभुनाथ द्विवेदी (पूर्व विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ), डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय (एसोसिएट प्रोफेसर, पार्श्वनाथ विद्यापीठ), डॉ. अशोक कुमार सिंह (एसोसिएट प्रोफेसर, पार्श्वनाथ विद्यापीठ) एवं श्री ओम प्रकाश सिंह (पुस्तकालयाध्यक्ष, पार्श्वनाथ विद्यापीठ) ने अपने शोध-पत्रों का वाचन कर परिसंवाद के विषय पर प्रकाश डाला। परिसंवाद की अध्यक्षता प्रो. रेवा प्रसाद द्विवेदी (इमेरिटस प्रोफेसर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी) ने की। अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा कि मुनिश्री का यह कार्य इनसाइक्लोपीडिया के समान है। प्रत्येक ग्रन्थों का परिचय संस्कृत भाषा में लिखना चाहिए एवं भाषा सरल होनी चाहिए। यदि मुनिश्री इस पुस्तक का प्रकाशन हमारी संस्था 'कालिदास संस्थानम्', वाराणसी से कराने का अवसर दें तो हमारे लिए यह आनन्द का विषय होगा। मंगलाचरण प. पू. मुनिश्री ने किया। स्वागत अभिवचन डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय ने किया। मंच संचालन डॉ. अशोक कुमार सिंह ने किया तथा परिसंवाद के अन्त में श्री महेन्द्रराज लुणावत जी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।