Book Title: Sramana 2012 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 16
________________ समवायांगसूत्र में पाठभेदों की प्रमुख प्रवृत्तियाँ : 9 पुढवी, पुहई - पहुओ, 15. पूर्ण और अपूर्ण नाम का प्रयोग जैसे विज्जाणुप्पवाय ( विद्यानुप्रवादपूर्व ) के स्थान पर अणुप्पवायपुव्व - अनुप्रवादपूर्व 22 वीरियपुव्वस्स - वीरियपवाय पुव्वस्स यह भी पाठ -भेद का कारण है। 121 16. क्रिया - बहुवचन - एकवचन होति - होंति, 23 आघविज्जति - आघविज्जंति, 124, 17. वर्तमान - भविष्य- भवति- भविस्संति, करेंति - करिस्संति, 2 सिज्झति - सिज्झिस्संति, 12 126 127 125 18. एक क्रिया के प्राकृत में कई आदेश - कृ करना के प्राकृत में कुण और कुव्व आदेश होते हैं- कुणइ- कुव्वइ, 128 19. समानार्थक क्रियाओं का प्रयोग- भवंति - जायंति, 129 ( होने या उत्पन्न होने के अर्थ में) 20. क्रियाओं के रूप में बहुलता- करेस्संति - करिस्संति 30 21. प्राकृत में द्वित्व की प्रवृत्ति के कारण पाठभेद प्राकृत में द्वित्व की प्रवृत्ति पायी जाती है। प्राकृत व्याकरणकारों ने प्राकृत में असंयुक्त व्यंजनों के द्वित्व होने के नियमों का निर्देश किया है (अ) समासदशा में आदेशभूत वर्णों का द्वित्व होता है, (ब) तैल आदि शब्दों के अनादिभूत अन्त्यव्यंजन हों या अनन्त्यव्यंजन, उनको यथादर्शन अर्थात् प्रयोग के अनुसार द्वित्व हो जाता है । 31 (स) तैल आदि शब्दों के अनादिभूत अन्त्यव्यंजन हों या अनन्त्यव्यंजन, उनको यथादर्शन अर्थात् प्रयोग के अनुसार द्वित्व होजाता है । 1 32 एका-एक्का 33 एकूण - एक्कूण 134 एक्कतीसं-एक्कत्तीसं'35 गद्दभे- गद्दब्भे 136 चोयालीस - चोतालीस - चोत्तालीस 37 काल (तिकाल ) - तेक्काल 138 महालियाए-महल्लियाए 39 सुक्किल - सुक्किल्ल 40 22. शब्दों का सामासिक प्रयोग और विभक्ति के साथ प्रयोग- समवायांगसूत्र की कुछ प्रतियों में वे ही शब्द सामासिक शब्द के रूप में तो कुछ में विभक्ति के साथ प्रयुक्त होने से पाठान्तर मिलते हैं अट्टझाणे- अट्टे झाणे, रुद्दझाणे - रुद्दे झाणे,

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