________________
(सुधर्म मुनिने आचार्यपद)
गाहा:
नाऊण जोगयं से सुह-रिक्खे सूरिणा निय-पयम्मी ।
अहिसित्तो सूरिवि य संलिहिय-तणू गओ मोक्खं ।।११९।। संस्कृत छाया :
ज्ञात्वा योग्यतां स 'शुभः सूरिणा निजपदे ।
अभिसिक्तः सूरिरपि च सल्लिखिततनुर्गतो मोक्षम् ।। ११९।। गुजराती अनुवाद :___आचार्य भगवंते सुधर्ममुनिनी योग्यता जाणीने शुब्ध नक्षत्रमा (मुहूर्तमा) पोतानां पद पर (स्थानमा) तेमने स्थापन कर्यां, अने त्यारबाद सूरिराज पण संलेखना कटी मोक्षे सिधाव्या। हिन्दी अनुवाद :
आचार्य भगवन्त ने सुधर्म मुनि की योग्यता को जानकर शुभ नक्षत्र (मुहूर्त) में अपने पद (स्थान) पर उसे स्थापित किया। उसके बाद सूरिराज भी संलेखना कर मोक्ष को प्राप्त हुए।
(धर्म प्रतिबोध करता सुधर्मसूरि)
गाहा:
समण-गण-संपरिवुडो सुहम्म-सूरीवि विविह-देसेसु ।
बोहितो भविय-जणं विहरइ पुर-गाम-नगरेसु ।।१२०।। संस्कृत छाया :
श्रमणगण सम्परिवृतः सुधर्मसूरिरपि विविधदेशेषु ।
बोधयन् भविकजनं विहरति पुरग्रामनगरेषु ।।१२०।। गुजराती अनुवाद :
मुनिवृंदथी परिवरेला श्री सुधर्मसूरि पण विविध देशोन्मां भव्य प्राणीओने बोध पमाडतां पुर-यास तथा नगरमा विहार करवा लाग्या। हिन्दी अनुवाद :
मुनिवृन्द से परिवृत्त श्री सुधर्मसूरि भी विविध देशों में भव्य प्राणियों को बोध देते हुए ग्राम तथा नगर में विहार करने लगे।
556