Book Title: Sramana 2010 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 260
________________ संस्कृत छाया : पञ्चमहाव्रतयुक्तौ समिति-गुप्तिषु सम्यगुपयुक्तौ । नानाविध तपो निरतौ गृह्णतश्च सूत्रार्थानि ।।२१९।। गुजराती अनुवाद : पंचमहाव्रत पालनमां रक्त, समिति-गुप्तिनां पालनमां सावधान, विविध तपमां परायण ते बने मुनिओर (गुछ समीपे) सूत्र तथा अर्थग्रहण कर्या। हिन्दी अनुवाद : पंच महाव्रत के पालन में लीन, समिति-गुप्ति के पालन में सावधान, विविध तप में परायण उन दोनों मुनियों ने (गुरु के समीप) सूत्र और अर्थ ग्रहण किया। गाहा : गुरु-आणाए निरया दोन्निवि पालेंति चरण-करणाई । एवं पभूय-कालो वोलीणो ताव दोण्हंपि ।। २२०।। संस्कृत छाया : गुर्वाज्ञायां निरतौ द्वावपि पालयतश्चरणकरणानि । एवं प्रभूत-कालो गतस्तावद् द्वयोरपि ।। २२० ।। गुजराती अनुवाद : गुर्वाज्ञामां हमेशा रत-चरण अने करणनी १४० प्रकारना साधुना आचारोनी पालनामां तत्पर स्वा ते बने महात्मानो घणो काल पसार थयो। हिन्दी अनुवाद : __गुरु की आज्ञा में सदा रत, चरण और करण के १४० प्रकार के साधु के आचारों के पालन में तत्पर ऐसे उन दोनों महात्माओं ने बहुत समय व्यतीत किए। (सुधर्मसूरिनो कालधर्म) गाहा : अह अन्नया कयाइवि थोवं निय-आउयं मुणेऊणं । सूरी संलिहिय-तणू अणसण-विहिणा मओ सम्मं ।। २२१।। संस्कृत छाया : अथान्यदा कदाचिदपि स्तोकं निजाऽऽयुषं ज्ञात्वा । सूरिः संलिखिततनुरनशन-विधिना मृतः सम्यक् ।। २२१।। 601

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