Book Title: Sramana 2010 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 263
________________ हिन्दी अनुवाद : नहीं त्यागे हुए रागवाली वह अनंगवती भी, साध्वी के व्रतों का पालन करती हुई विद्युत्प्रभ देव की चन्द्रलेखा नाम की देवी हुई। (सुबंधुना जीव अग्निकुमारदेवे कनकरथ-सुलोचनाने हण्या) गाहा : संभरिय पुव्व-वेरं बहूवसग्गे करित्तु अइभीमे । अग्गि-कुमार-सुरेणं सुबंधु-जीवेण पावेण ।। २२६।। कणगरहो सो साहू सुलोयणाए समं तु अज्जाए । निहओ तं उवसग्गं विसहंतो सम्म-भावेण ।। २२७।। कालं काउं दोन्निवि उववन्नाइं तु बिय-कप्पम्मि । चंदज्जुणे विमाणे सामाणिय-देव-भावेण ।। २२८।। त्रिभिः कुलकम्।। संस्कृत छाया : संस्मृत्य पूर्ववैरं बहूपसर्गान् कृत्वा अतिभीमान् । अग्निकुमार-सुरेण सुबन्धुजीवेन पापेन ।। २२६।। कनकरथः स साधुः सोलुचनया समं त्वार्यया । निहतस्तमुपसर्ग विसहन् सम्यग् भावेन् ।। २२७।। कालं कृत्वा द्वावपि उत्पन्नौ तु द्वितीयकल्पे । चन्द्रार्जुने विमाने सामानिकदेवभावेन ।।२८।। त्रिभिः कुलकम् गुजराती अनुवाद : सुबंधुना जीव पापी असिकुमार देव वडे पूर्वभवतुं वैर स्मरण करीने अतिभयंकर घणा उपसर्ग करीने आर्या सुलोचनानी साथे कनकरथ साधु हणाया। ते उपसर्गोने यावथी सारी रीते सहन करता-काल करीने ते बने सुलोचना अने कनकरथ बीजा देवलोकमां चन्द्रार्जुन नामनां विमानमां सामानिक देव तरीके उत्पन्न थया। हिन्दी अनुवाद : सुबंधु का जीव पापी अग्निकुमार देव के द्वारा पूर्वभव के वैर का स्मरण कर अत्यन्त भयंकर बहुत से उपसर्ग करके आर्या सुलोचना के साथ कनकरथ साधु मारा गया। उन उपसर्गों को भावपूर्वक सम्यक् भाव से सहन करते हुए काल करके (मृत्यु 604

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