Book Title: Sramana 2010 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 269
________________ गाहा: तुमएच्चिय अणुभूयं विओय-दुक्खं सुदूसहं जमिह । भो चित्तवेग! किंवा कहिएणं तेण तुह पुरओ? ।। २४०।। संस्कृत छाया : त्वया एवानुभूतं वियोग-दुःखं सुदुःसहं यदिह । भो! चित्रवेग! किं वा कथितेन तेन तव पुरतः? ।। २४०।। गुजराती अनुवाद : हे चित्रवेग! तारा वडे आ व्यवमा जे अति-दुःसह वियोगर्नु दुःख अनुभवायुं छे, तें तारी समक्ष कहेवा वडे शुं? हिन्दी अनुवाद : हे चित्रवेग! तुम्हारे द्वारा इस भव में जो अति दुःसह वियोग के दुःख का अनुभव हुआ है, उसे तुम्हारे सामने कैसे कहा जाए? गाहा : काऊणवि सामन्नं सराग-भावो तुमे न जं चत्तो। तस्स फलेणं एसा दूसहा तुहावया जाया ।। २४१।। संस्कृत छाया : कृत्वाऽपि श्रामण्यं सराग-भावस्त्वया न यत् त्यक्तः । तस्य फलेन एषा दुःसहा तवापद् जाता ।।२४१।। गुजराती अनुवाद : मुनिपणु स्वीकारीने पण रागभाव तारा वडे जे न त्यजायो तेना फल स्वरूप असह्य स्वी आपत्तिओ (प्राप्त) थई। हिन्दी अनुवाद : श्रमणत्व को स्वीकार करके भी तेरे द्वारा रागभाव का त्याग नहीं किया गया, जिसके फलस्वरूप ऐसी असह्य आपत्तियाँ (प्राप्त) हुईं। (चित्रगतिनुं वर्णन) गाहा : देव- भवे तुह मित्तो चंदज्जुण-नामगो य जो आसि । चइऊण सोवि तत्तो चित्तगई एत्थ संजाओ ।। २४२।। 610

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