Book Title: Sramana 2010 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 234
________________ ( गुरुजी द्वारा फरी प्रकाश) गाहा : तत्तो गुरुणा भणियं मणोहरा तुज्झ जइवि सा महिला । तहवि हु उवभुज्जंता सरणी सा नरय-नयरस्स ।। १६१।। संस्कृत छाया : ततो गुरुणा भणितं मनोहरा तव यद्यपि सा महिला । तथाऽपि खलूपभुज्यमाना सरणिः सा नरक-नगरस्य ।। १६१ ।। गुजराती अनुवाद : त्यारे 'गुरू वडे कहेवायुं, जो के तारी स्त्री सुंदर छे तो पण भोगवाती ते नरकाना नगरनो मार्ग छे । हिन्दी अनुवाद : तब गुरु के द्वारा कहा गया, यद्यपि तुम्हारी स्त्री सुन्दर है, फिर भी भोगी जाती हुई वह नरक के नगर का मार्ग है । गाहा : जह किंपाग - फलाई भुत्ताइं दुहावहाइं इह होंति । तह इत्थी - सुरय- सुहं मणहरमवि दोग्गई नेइ । । १६२ । । संस्कृत छाया : यथा किम्पाकफलानि भुक्तानि दुःखावहानीह भवन्ति । तथा स्त्री- सुरत- सुखं मनोहरमपि दुर्गतिं नयति । । १६२ । । गुजराती अनुवाद : जेवी रीते किंपाक फळोनो उपभोग आ भवमां ज दुःखदायक छे ते रीते स्त्री माथे (सुरत) काम क्रीडानुं सुख मनोहर होवा छतां परिणामे दुर्गतिमां लइ जाय छे। हिन्दी अनुवाद : जिस प्रकार किंपाक फल का उपयोग इस भव में दुःखदायक है, उसी प्रकार स्त्री के साथ (सुरत) काम क्रीड़ा का सुख मनोहर होते हुए भी उसका परिणाम दुर्गति में ले जाता है। 575

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