Book Title: Sramana 2010 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 251
________________ संस्कृत छाया : भणित आर्याभ्यां गुरुरेषा आवयोज्येष्ठ-भगिनी ओ! । किं भवति न वा भगवन्! जातोन्मत्ता कथं वा? ।।१९९।। गुजराती अनुवाद : त्यां जइने बंने साध्वीजीए कहा, हे गुरु महाराज! आ अमारी मोटी बहेन छे के नहीं? अने जो ते होय तो एनी आवी उन्मत्तदशा शाथी थई हिन्दी अनुवाद : वहाँ जाकर दोनों साध्वीजी ने कहा, 'हे गुरु महाराज! यह हमारी बड़ी बहन है या नहीं? और यदि ऐसा है तो इसकी ऐसी उन्मत्तदशा क्यों हुई है? (गुरुजी द्वारा समाधान) गाहा : भणियं गुरुणा तत्तो नाणेण वियाणिऊण परमत्थं । सच्चिय सुलोयणा सा कणगरहो एस जुवराया ।।२००।। संस्कृत छाया : भणितं गुरुणा ततो ज्ञानेन विज्ञाय परमार्थम् । सैव, सुलोचना सा कनकरथ एष युवराजः ।। २००।। गुजराती अनुवाद : त्यारबाद गुरुर ज्ञान वडे पटामार्थने जाणीने कहूं, 'तेमज छे आ खरेखर सुलोचना ज छे अने आ कनकरथ युवराज छ। हिन्दी अनुवाद : उसके बाद गुरु ने ज्ञान के द्वारा परमार्थ को जानकर कहा, 'ऐसा ही है, यह सचमुच सुलोचना ही है और यह कनकरथ युवराज है'। (शौक्य द्वारा उपसर्ग) गाहा : जोगो मइ-मोहकरो सीसे खित्तो इमाण सुत्ताण । एक्काए सवत्तीए ईसा-वस-गाढ-कुद्धाए ।। २०१।। 592

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